नयी दिल्ली, 18 अक्तूबर (एजेंसी) महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट से कहा है कि कोविड-19 के बीच नांदेड़ गुरुद्वारा को परम्परा के मुताबिक दशहरा जलूस निकालने की अनुमति देना ‘व्यावहारिक रूप से सही विकल्प’ नहीं है और राज्य सरकार ने वायरस का प्रसार रोकने के लिए धार्मिक उत्सवों के आयोजन को अनुमति नहीं देने का फैसला सोच समझकर लिया है। राज्य सरकार ने कहा कि इसके पुराने अनुभव के मुताबिक स्थितियों और लगाए गए प्रतिबंधों पर कड़ी निगरानी बनाए रखना संभव नहीं है और इसका परिणाम घातक वायरस के प्रसार के तौर पर होता है। सरकार ने कहा कि निर्णय पूरी तरह उचित है और इस अदालत को अपने असाधारण संवैधानिक रिट न्यायाधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल कर हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है। जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ याचिका पर सोमवार को सुनवाई कर सकती है, जब शीर्ष अदालत में दशहरा की छुट्टियां होंगी। पीठ ने ‘नांदेड़ सिख गुरुद्वारा सचखंड श्री हजूर अबचलनगर साहिब बोर्ड’ की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था। राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि उसने सोच-समझकर धार्मिक उत्सवों का आयोजन और बड़ी संख्या में लोगों के एकत्रित होने पर रोक लगाने का निर्णय किया है और इसमें कुछ भी अपवाद नहीं है।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।