आखिरी सांस तक गांव की मिट्टी से जुड़े रहे लॉर्ड स्वराज पॉल
भारतीय मूल के दिग्गज ब्रिटिश उद्योगपति, कपारो ग्रुप के संस्थापक और पद्मभूषण से सम्मानित लॉर्ड स्वराज पॉल भले ही दुनिया भर में नाम और शोहरत पाते रहे हों, लेकिन उनके दिल की धड़कनें हमेशा अपने पैतृक गांव चांग और ननिहाल चरखी दादरी से जुड़ी रहीं। 21 अगस्त की शाम को 94 वर्ष की आयु में लंदन में उनका निधन हो गया। उनके निधन की खबर मिलते ही भिवानी जिले के गांव चांग और ननिहाल चरखी दादरी में शोक की लहर दौड़ गई। ग्रामीणों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा, लॉर्ड पॉल भले ही लंदन में रहते थे, पर दिल से कभी गांव से दूर नहीं हुए।
लॉर्ड स्वराज पॉल का जन्म 1931 में अविभाजित पंजाब के जालंधर में हुआ था। उनके पिता सेठ प्यारे लाल मूल रूप से भिवानी जिले के गांव चांग के रहने वाले थे। वे व्यापार में सक्रिय थे और पाकिस्तान विभाजन के बाद चांग गांव में कई परिवारों को जमीन दिलाने में मददगार रहे। ग्रामीणों ने बताया कि उनके पिता 1930 में जालंधर चले गए थे जहां उन्होंने स्टील की बाल्टी व खेती के उपकरण बनाने का छोटा सा ढलाई घर चलाया। उनका बनाया हुआ लांदडा अमीचंद प्यारेलाल गंडासा (पशुचारा काटने का उपकरण) आज तक प्रसिद्ध है। स्वराज पॉल चार भाइयों में तीसरे थे-सत्य पॉल, जीत पॉल और सुरेंद्र पॉल उनके भाई थे।
गांव से बात करते ही खिल उठता था चेहरा :गांव के बुजुर्ग और युवा बताते हैं कि स्वराज पॉल का गांव से जुड़ाव अद्भुत था। जब भी उन्हें चांग या चरखी दादरी से कोई साधारण फोन कॉल या वीडियो कॉल मिलती, वे रोमांचित हो उठते। उनके चेहरे पर चमक आ जाती और बार-बार कहते-यहीं बीता है मेरा बचपन, यही मेरी असली पहचान है। 2005 में पहली बार गांव के तत्कालीन सरपंच सुरेश दहिया ने उनसे लंदन में फोन पर बात की। शेष पेज 2 पर
पोते की आंखों से देखा गांव
लॉर्ड स्वराज पॉल भले ही खुद गांव नहीं आ पाए, लेकिन पिछले वर्ष उन्होंने अपने पोते आरूष पॉल को चांग भेजा। आरूष जब कन्या स्कूल और पुश्तैनी मकान में पहुंचे तो उन्होंने वीडियो कॉल के जरिये दादा को पूरा गांव दिखाया। उस समय लॉर्ड पॉल की आंखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान देखकर ग्रामीण भी भावुक हो उठे।
शिक्षा को दी बड़ी पूंजी
स्वराज पॉल को गांव की शिक्षा व्यवस्था सुधारने का जुनून था। करीब 60 साल पहले उन्होंने अपने भाइयों के साथ मिलकर गांव में एपीजे कन्या स्कूल का निर्माण कराया। आज इस स्कूल में 500 से ज्यादा छात्राएं पढ़ रही हैं। पिछले साल उनकी कंपनी कपारो ग्रुप की ओर से स्कूल भवन के पुनर्निर्माण के लिए 3 करोड़ रुपये की मदद की घोषणा की गई। चरखी दादरी में भी उनकी संस्था के सहयोग से कई शिक्षण संस्थान चल रहे हैं। ग्रामीण कहते हैं-लॉर्ड पॉल ने गांव के लिए जो किया, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता।