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Land Pooling किसानों की ज़मीन पर कानूनी जंग: पंजाब की नयी लैंड पूलिंग नीति को हाईकोर्ट में चुनौती

पंजाब सरकार की नई लैंड पूलिंग नीति को चुनौती देते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह नीति राज्य की उपजाऊ कृषि भूमि को ‘विकास’ के...
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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का फाइल फोटो
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पंजाब सरकार की नई लैंड पूलिंग नीति को चुनौती देते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह नीति राज्य की उपजाऊ कृषि भूमि को ‘विकास’ के नाम पर अधिग्रहित करने का माध्यम बन रही है, जिससे किसानों की आजीविका और अधिकारों पर प्रत्यक्ष खतरा मंडरा रहा है।

यह याचिका समाजसेवी नवीनिंदर पीके सिंह और समीता कौर ने दाखिल की है। उन्होंने दावा किया है कि मोहाली और लुधियाना के 50 से अधिक गांवों की लगभग 24,000 एकड़ ज़मीन शहरी विस्तार के लिए चिह्नित की गई है, जबकि अतिरिक्त 21,000 एकड़ भूमि को औद्योगिक विकास के दायरे में लाया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि इस प्रक्रिया में हज़ारों किसान और खेतिहर मज़दूर प्रभावित होंगे और कथित तौर पर ‘जबरन सहमति’ ली जा रही है।

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‘कानून को दरकिनार’: सामाजिक आकलन और पुनर्वास की अनदेखी

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून-2013 के तहत अनिवार्य सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन, पारदर्शी मुआवज़ा प्रणाली और पुनर्वास जैसे बुनियादी प्रावधानों की पूरी तरह अनदेखी की जा रही है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों साहिर सिंह विरक और वीबी गोदारा ने तर्क दिया कि यह भूमि पूलिंग नीति किसी विधायी अधिनियम के अंतर्गत नहीं आती, और न ही इसमें किसानों के वैधानिक अधिकारों की गारंटी दी गई है। अधिवक्ताओं ने विशेष रूप से 2013 के अधिनियम की धाराएं 4, 8, 10, 11 और 24 का उल्लेख करते हुए कहा कि किसान की मर्ज़ी और पुनर्वास योजनाओं के बिना ज़मीन लेना कानूनन अवैध है।

प्रशासन का पक्ष: किसानों के लिए पारदर्शी प्रस्ताव

वहीं, राज्य सरकार और ग्रेटर लुधियाना एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (GLADA) का कहना है कि भूमि पूलिंग एक स्वैच्छिक योजना है, जिसमें किसानों से ज़मीन छीनी नहीं जा रही, बल्कि उन्हें विकसित क्षेत्रों में हिस्सेदारी दी जा रही है। अधिकारियों के मुताबिक, यह नीति लुधियाना और मोहाली जैसे शहरी क्षेत्रों में संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए तैयार की गई है।

हालांकि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 1,600 से अधिक किसानों ने इस नीति के खिलाफ आपत्तियाँ दर्ज की हैं। आरोप है कि न तो ग्राम सभाओं की पूर्व अनुमति ली गई, न ही कोई पर्यावरणीय मूल्यांकन कराया गया।

कोर्ट से मांग: नीति पर रोक और न्यायिक समीक्षा

याचिका में हाईकोर्ट से मांग की गई है कि 4 जुलाई 2025 को अधिसूचित भूमि पूलिंग नीति को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए और जब तक सभी वैधानिक प्रक्रियाएं पूरी नहीं हो जातीं, तब तक किसी भी भूमि संबंधी गतिविधि या अधिसूचना पर रोक लगाई जाए। इसके साथ ही वर्ष 2013 में लागू की गई मूल भूमि पूलिंग नीति की भी न्यायिक समीक्षा की मांग की गई है।

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