सुरेश एस डुग्गर
जम्मू, 8 अक्तूबर
पांच दिनों के भीतर 7 नागरिकों, जिनमें 4 अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित थे, की हत्याओं के प्रति एक चौंकाने वाला तथ्य यह था कि पुलिस के पास आतंकी योजनाओं की खबर 3 से 4 माह पहले मिली थी पर बावजूद इसके इन मौतों को रोका नहीं जा सका। अब दबे स्वर में माना जा रहा है कि कश्मीर घाटी में नागरिकों को टारगेट बनाकर उनकी हत्या किए जाने के बारे में सुरक्षा एजेंसियों को 3 महीने से ही पहले मजबूत इनपुट थे।
हाल ही में कश्मीरी पंडितों को सरकार ने घाटी में नौकरियां दी हैं जिसकी वजह से कई लोग वापस लौटे हैं। सरकार के इस कदम से आतंकी बौखला गए थे। ताजा हत्याओं ने उन कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा भी खतरे में डाल दी है जो 1990 के दशक में आतंकी खतरे के बावजूद घाटी में ही डटे रहे थे। रिपोर्ट कहती है कि पुलिस सूत्रों के मुताबिक़ शहर में हमलों के बारे में ख़ुफ़िया इनपुट थे और कई जगहों पर अतिरिक्त नाके भी लगाए गए थे। सूत्रों के अनुसार, सुरक्षा एजेंसियों के पास इनपुट थे कि आतंकवादी तीन समूहों को निशाना बना रहे हैं। ये समूह थे भाजपा, अपनी पार्टी के नेता, अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडित और सिख और सरकार समर्थक आवाजें जिन्हें आतंकवादी सहयोगी कहते हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, इस साल कश्मीर में 28 नागरिक मारे गए। इन 28 में से तीन गैर-स्थानीय थे, चार कश्मीरी पंडित थे और बाकी मुसलमान थे। सबसे ज्यादा हमले श्रीनगर में हुए, जहां पर 12 ऐसी घटनाएं हुईं। इसके बाद पुलवामा और अनंतनाग में चार-चार घटनाएं हुई हैं।