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Karnataka: गौड़ा परिवार की साख पर संकट, प्रज्वल रेवन्ना की सजा से जद (एस) हाशिए पर

Gowda family Politics: कर्नाटक की राजनीति में कभी शक्तिशाली क्षेत्रीय ताकत रही जनता दल (सेक्युलर) आज खुद को नैतिक, चुनावी और संगठनात्मक रूप से एक नाजुक मोड़ पर खड़ा पा रही है, क्योंकि पार्टी का प्रथम परिवार अब तक की...
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प्रज्वल रेवन्ना की फाइल फोटो। पीटीआई
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Gowda family Politics: कर्नाटक की राजनीति में कभी शक्तिशाली क्षेत्रीय ताकत रही जनता दल (सेक्युलर) आज खुद को नैतिक, चुनावी और संगठनात्मक रूप से एक नाजुक मोड़ पर खड़ा पा रही है, क्योंकि पार्टी का प्रथम परिवार अब तक की सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक से जूझ रहा है।

पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना को बलात्कार के एक मामले में हाल में सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा ने न केवल इस राजनीतिक उत्तराधिकारी की छवि को कलंकित किया है, बल्कि पहले से ही पतन की ओर अग्रसर पार्टी के भविष्य को अंधकार में डाल दिया है।

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जद (एस) के संरक्षक और पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल को 2021 में परिवार के फार्महाउस और बेंगलुरु स्थित आवास पर 48 वर्षीय घरेलू सहायिका के यौन उत्पीड़न के आरोप में एक विशेष अदालत ने दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने रेवन्ना को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की कई धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए कड़ी सजा सुनाई और 11.5 लाख रुपये का भारी जुर्माना लगाया, जिसमें से 11.25 लाख रुपये पीड़िता को देने होंगे।

अदालत के फैसले ने अपराध की गंभीरता और एक मौजूदा सांसद के रूप में दोषी द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रेखांकित किया। जद (एस) एक ऐसी पार्टी है जिसने लंबे समय से खुद को क्षेत्रीय गौरव और किसान हितों के संरक्षक के रूप में पेश किया है। इस घटना के कारण पार्टी की छवि को हुआ यह नुकसान चुनावी आंकड़े या सार्वजनिक धारणा से कहीं अधिक गहरा है।

यह कांड उस पार्टी की विश्वसनीयता पर प्रहार करता है, जिस पर दशकों से गौड़ा परिवार का मजबूत नियंत्रण रहा है। अब वह नियंत्रण जांच के दायरे में है। पार्टी के लिए इस झटके का समय इससे बुरा नहीं हो सकता था क्योंकि पार्टी 2023 के विधानसभा चुनाव में मिली हार से अभी उबर ही रही थी कि रेवन्ना के खिलाफ यह मामला सामने आ गया।

जद (एस) के 2018 में 37 विधायक थे, जो 2023 के विधानसभा चुनाव में घटकर केवल 19 रह गए, जो उसकी विधायी संख्या का लगभग आधा है। इस करारी शिकस्त ने न केवल उसकी सौदेबाजी की ताकत को कम किया, बल्कि लंबे समय से ‘धर्मनिरपेक्ष' होने का दावा करने वाली जद (एस) को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ एक असहज गठबंधन करने के लिए मजबूर कर दिया, क्योंकि पार्टी वर्षों तक भाजपा को ‘सांप्रदायिक' कहकर सार्वजनिक रूप से उसका कड़ा विरोध करती थी।

इस वैचारिक समझौते ने उसके कई पारंपरिक मूल मतदाताओं का मोहभंग कर दिया, कुछ कांग्रेस की ओर चले गए और कुछ ने उससे नाता तोड़ लिया। इस कमजोर स्थिति में प्रज्वल की दोषसिद्धि और भी चुनौतियां पैदा करती है। पीड़िता रेवन्ना परिवार की एक सेविका थी, यह तथ्य घटना को न केवल आपराधिक बनाता है बल्कि विश्वास और सत्ता के साथ विश्वासघात को भी उजागर करता है।

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले रेवन्ना का अश्लील वीडियो सामने आया था, जिसने इस शर्मिंदगी को और बढ़ा दिया। 2024 के लोकसभा चुनाव में वह अपनी पारंपरिक हासन सीट से हार गए थे। संस्थापक परिवार के एक प्रमुख सदस्य का इतने गंभीर अपराध में शामिल होना पुराने मैसूर क्षेत्र में पार्टी के वफादार मतदाताओं को भी अलग-थलग कर सकता है।

दूसरा, यह सवाल उठ रहा है कि क्या पार्टी नेतृत्व को प्रज्वल के आचरण के बारे में पहले से पता था और उसने उसे बचाने का फैसला किया, क्योंकि ये अपराध 2021 के हैं लेकिन 2024 में ही सार्वजनिक हुए। वहीं, 91 वर्षीय एच. डी. देवेगौड़ा फैसले के बाद से सार्वजनिक रूप से चुप्पी साधे हुए हैं। देवेगौड़ा के पुत्र एवं प्रज्वल के पिता एच. डी. रेवन्ना स्वयं एक प्रमुख जद (एस) नेता हैं। वह भी संबंधित मामलों में कानूनी जांच के घेरे में हैं।

जद (एस) में दूसरे नंबर के नेता और केंद्रीय मंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने अपने बेटे निखिल कुमारस्वामी को जद (एस) की तीसरी पीढ़ी के नेता के रूप में पेश करने की कोशिश की है, हालांकि 2019 के मांड्या लोकसभा चुनाव से लेकर 2024 के चन्नपटना उपचुनाव तक लगातार तीन चुनाव में उनकी हार ने गौड़ा परिवार की उम्मीदों को तोड़ दिया और परिवार द्वारा संचालित पार्टी में नेतृत्व संकट को गहरा कर दिया।

एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि पिछले 26 वर्षों में जद (एस) का लगातार पतन हुआ है। उन्होंने कहा, ‘‘चुनाव दर चुनाव पार्टी की संभावनाएं कम होती गई हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में वे केवल 19 सीट और 19 प्रतिशत वोट शेयर पर सिमट गए, जो पिछले दो दशकों में उनका सबसे खराब प्रदर्शन है। पार्टी के कम होते प्रभाव को भांपते हुए देवेगौड़ा ने भाजपा के साथ समझौते का बुद्धिमानी भरा फैसला किया जिसका दोनों पक्षों को फायदा हुआ। लेकिन प्रज्वल रेवन्ना प्रकरण किसी आपदा से कम नहीं है।''

उपाध्याय के अनुसार, भाजपा शुरू में जद (एस) को 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रज्वल को उम्मीदवार बनाने की अनुमति देने से हिचक रही थी, लेकिन देवेगौड़ा ने जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘‘अब उन्हें करारा झटका लगा है। प्रज्वल का राजनीतिक करियर खत्म हो गया है।''

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