जस्टिस वर्मा का आचरण विश्वास से परे, याचिका खारिज
नकदी को अग्नि... सुप्रीम कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने आंतरिक जांच समिति की उस रिपोर्ट को अमान्य करार देने का अनुरोध करने वाली इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका बृहस्पतिवार को खारिज कर दी, जिसमें उन्हें नकदी बरामदगी मामले में कदाचार का दोषी ठहराया गया है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए जी मसीह की पीठ ने कहा कि जस्टिस वर्मा का आचरण विश्वास से परे है और उनकी याचिका पर सुनवाई नहीं की जानी चाहिए। यह जस्टिस वर्मा के लिए एक बड़ा झटका है जो दिल्ली स्थित अपने आधिकारिक आवास के भंडार गृह में आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में अधजली नकदी बरामद होने के बाद विवादों के घेरे में हैं।
जस्टिस वर्मा ने 8 मई की उस सिफारिश को रद्द करने का भी अनुरोध किया था जिसमें तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने संसद से उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तत्कालीन सीजेआई और आंतरिक समिति ने पूरी प्रक्रिया का कड़ाई से पालन किया, सिवाय वीडियो फुटेज और तस्वीरें अपलोड करने के।
जस्टिस दत्ता ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘हमने माना है कि निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर आग बुझाने के अभियान की तस्वीरें और वीडियो अपलोड करना आवश्यक नहीं था। लेकिन ऐसा कहने के बाद भी, हमने यह भी स्पष्ट किया है कि इसका कोई विशेष महत्व नहीं है, क्योंकि उचित समय पर आपने इस मुद्दे को नहीं उठाया। साथ ही, आपकी रिट याचिका में अपलोडिंग को लेकर कोई राहत की मांग भी नहीं की गई थी।'
शीर्ष अदालत ने कहा कि आंतरिक जांच प्रक्रिया और तत्कालीन चीफ जस्टिस द्वारा नियुक्त न्यायाधीशों की समिति ने निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया था और रिपोर्ट को प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश के साथ भेजना असंवैधानिक नहीं था। पीठ ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक प्रक्रिया को कानूनी मान्यता प्राप्त है और यह संवैधानिक ढांचे से बाहर कोई समानांतर व्यवस्था नहीं है। न्यायालय ने उन्हें यह स्वतंत्रता दी है कि यदि उनके विरुद्ध महाभियोग की कार्यवाही शुरू होती है, तो वह उसमें अपनी बात रख सकते हैं। न्यायालय ने अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्पारा द्वारा दायर उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ ‘न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग' के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया गया था।