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राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकती न्यायपालिका : धनखड़

बोले- लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘परमाणु मिसाइल' नहीं दाग सकता सुप्रीम कोर्ट
जगदीप धनखड़। पीटीआई फाइल फोटो
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नयी दिल्ली, 17 अप्रैल (एजेंसी)उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बृहस्पतिवार को न्यायपालिका द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने और ‘सुपर संसद' के रूप में कार्य करने को लेकर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘परमाणु मिसाइल' नहीं दाग सकता। धनखड़ ने न्यायपालिका के प्रति यह कड़ी टिप्पणी राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए की। कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए समयसीमा तय की थी। उन्होंने कहा,‘इसलिए, हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका के कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।' उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण शक्तियां प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 142 को ‘न्यायपालिका को चौबीसों घंटे उपलब्ध लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल' करार दिया। संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को अपने समक्ष किसी भी मामले में ‘पूर्ण न्याय' सुनिश्चित करने हेतु आदेश जारी करने की शक्ति देता है। इस शक्ति को सुप्रीम कोर्ट की ‘पूर्ण शक्ति' के रूप में भी जाना जाता है।

धनखड़ ने कहा कि भारत के राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति संविधान के संरक्षण, सुरक्षा और बचाव की शपथ लेते हैं। मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसद और न्यायाधीश सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं। हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीश होने चाहिए...।' उन्होंने कहा, ‘समय आ गया है जब हमारी तीन संस्थाएं -विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका -फूलें-फलें... किसी एक द्वारा दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप चुनौती पैदा करता है, जो अच्छी बात नहीं है...।'

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'जज के घर नकदी मिलने पर दर्ज क्यों नहीं की प्राथमिकी'

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाईकोर्ट के एक जज के आवास से बड़ी मात्रा में नकदी की बरामदगी से जुड़े मामले में प्राथमिकी दर्ज न किए जाने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि अगर यह घटना आम आदमी के घर पर हुई होती, तो प्राथमिकी दर्ज किए जाने की गति इलेक्ट्रॉनिक रॉकेट सरीखी होती। उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्र जांच या पूछताछ के खिलाफ किसी तरह का 'सुरक्षा कवच' नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी संस्था या व्यक्ति को पतन की ओर धकेलने का सबसे पुख्ता तरीका उसे जांच से सुरक्षा की पूर्ण गारंटी प्रदान करना है। यहां राज्यसभा प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक महीने से ज्यादा समय बीत चुका है। भले ही इस मामले के कारण शर्मिंदगी या असहजता का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अब समय आ गया है कि इससे पर्दा उठाया जाए।

 

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