नयी दिल्ली, 4 जून (एजेंसी)
मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक लंबित याचिका में हस्तक्षेप का आग्रह करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हस्तक्षेप याचिका में कहा गया है कि मूल याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में वे आधार रखे हैं, जिन पर शीर्ष अदालत की संविधान पीठ पहले ही विचार कर चुकी है। याचिका में कहा गया है, ‘इस अदालत ने स्पष्ट रूप से माना है कि कानून को अतीत में पहुंचने के लिए एक उपकरण के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और हर उस व्यक्ति को कानूनी उपाय प्रदान नहीं किया जा सकता जो इतिहास की धारा से असहमत है। आज की अदालतें ऐतिहासिक अधिकारों एवं गलतियों का संज्ञान तब तक नहीं ले सकतीं, जब तक यह नहीं दर्शाया जाता कि उनके कानूनी परिणाम वर्तमान में लागू करने योग्य हैं।’ संगठन ने कहा कि वक्फ अधिनियम और पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के बीच कोई विरोधाभास नहीं है, जैसा कि उपाध्याय ने आरोप लगाया है, क्योंकि 1991 के अधिनियम की धारा-सात इसे अन्य अधिनियमों पर एक अधिभावी प्रभाव देती है। संगठन ने कहा है, ‘कई मस्जिदों की एक सूची है, जो सोशल मीडिया पर घूम रही है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि कथित रूप से हिंदू पूजा स्थलों को नष्ट करके मस्जिदों का निर्माण किया गया था।’ याचिका में कहा गया है कि यदि वर्तमान याचिका पर विचार किया जाता है, तो देश में अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमेबाजी के द्वार खुल जाएंगे।