Jalebi Politics: चुनाव से लेकर शाह की परिषद मीटिंग तक छाई हरियाणा के गोहाना की जलेबी
Jalebi Politics: हरियाणा की मशहूर गोहाना जलेबी अब सिर्फ मिठाई नहीं रही। यह राजनीति का स्वाद तय करने वाली नई पहचान बन चुकी है। 2024 के चुनावों में शुरू हुई ‘जलेबी पॉलिटिक्स’ अब प्रशासनिक उच्चस्तरीय मंचों तक पहुंच चुकी है।
फरीदाबाद में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई 32वीं उत्तर क्षेत्रीय परिषद बैठक में पर्यटन मंत्री डॉ. अरविंद शर्मा ने सभी राज्यों के प्रतिनिधियों का स्वागत गोहाना की जलेबी और शॉल से किया। ‘मीठी डिप्लोमेसी’ का यह अंदाज़ सभी अतिथियों को खूब भाया और हरियाणा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उसकी मेहमाननवाजी में मिठास ही नहीं, संदेश भी छिपा होता है।
सूरजकुंड के होटल राजहंस में बैठक शुरू होने से पहले पर्यटन मंत्री डॉ. अरविंद शर्मा ने पंजाब के राज्यपाल व चंडीगढ़ प्रशासक गुलाब चंद कटारिया, दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू सहित सभी प्रतिनिधियों को जलेबी और शॉल भेंट किए। उन्होंने कहा कि हरियाणा की धरती अपने अतिथियों का सम्मान दिल से करती है। जलेबी हमारी मिठास और परंपरा दोनों है।
जलेबी के लोकप्रिय होने के पीछे तीन बड़े कारण बताए जा रहे हैं। स्थानीयता का पसंदीदा प्रतीक। हर वर्ग में स्वीकार्यता और भावनात्मक जुड़ाव और सकारात्मक संदेश है मिठास, खुशी, समृद्धि और परंपरा का प्रतीक नेताओं के लिए यह अब सिर्फ ट्रीट नहीं, बल्कि ब्रांडिंग टूल बन चुकी है। हरियाणा का दावा है कि जलेबी उनकी संस्कृति का मीठा प्रतीक है। अब जब यह राजनीतिक मंचों के साथ-साथ प्रशासनिक बैठकों में भी जगह बना रही है, तो यह साफ है कि ‘जलेबी पॉलिटिक्स’ एक सफल सांस्कृतिक ब्रांडिंग का उदाहरण बन चुकी है।
हरियाणा की जलेबी बनी राष्ट्रीय पहचान
इस मंच पर जलेबी का पहुंचना कोई साधारण घटना नहीं। जलेबी अब सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि हरियाणा की वह सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है जिसने पिछले दो साल में राष्ट्रीय राजनीतिक बहस को कई बार मीठा और कभी-कभी कटु बनाया है। केंद्र से लेकर राज्यों तक, चुनावी मंचों से लेकर प्रशासनिक मीटिंगों तक, यह पहली बार है जब किसी राज्य की स्थानीय मिठाई इतना बड़ा संदेश लेकर सामने आई हो।
राहुल को मिली जलेबी बनी सियासत की चिंगारी
जलेबी पॉलिटिक्स की शुरुआत लोकसभा चुनाव 2024 में तब हुई, जब राहुल गांधी हरियाणा के गोहाना पहुंचे। स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने उन्हें शहर की प्रसिद्ध देसी घी की बड़ी जलेबी भेंट की। राहुल गांधी ने जलेबी उद्योग का जिक्र किया और इसके विकास की बात कही। यही बयान आगे चलकर भाजपा के लिए मुद्दा बन गया। नेताओं ने तंज कसे – ‘जलेबी खाकर विकास की बात!’ यहीं से यह मीठा मुद्दा गरमाया और जलेबी ने चुनावी बहस का स्वाद बदल दिया।
विधानसभा चुनावों में भी छाई रही ‘जलेबी जंग’
अक्टूबर 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनाव आते-आते जलेबी राजनीति का केंद्र बिंदु बन चुकी थी। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी जहां भी जाते, राहुल गांधी के जलेबी वाले बयान पर चुटकी लेना नहीं भूलते। सोशल मीडिया पर मीम्स, वीडियो और पोस्ट्स की भरमार रही। ‘जलेबी बनाम जम्हूरियत’ जैसे टैग ट्रेंड में रहे। विपक्ष कहता रहा कि जलेबी रोज़गार नहीं देगी, तो भाजपा इसे हरियाणा की विरासत बताकर आगे बढ़ाती रही।
जलेबी बनी चुनावी कैंपेन का ‘स्वीट वेपन’
निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं जलेबी के असर को रोक न सकीं। दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जीत के बाद समर्थकों को हरियाणा से मंगाई जलेबियां खिलाईं। शहर में खूब चर्चा हुई – ‘दिल्ली की जीत, हरियाणा की मिठास।’ महाराष्ट्र में भी रैलियों और जनसभाओं के दौरान जलेबियों की सौगात दी गई। बिहार में नेताओं ने मंचों पर जलेबियां बांटकर ‘मीठे भविष्य’ का संदेश दिया। राजनीतिक रणनीतिकारों के शब्दों में – ‘जलेबी भावनात्मक कनेक्ट का सबसे आसान हथियार बन गई है।’
