नयी दिल्ली, 22 अक्तूबर (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि बीमा अनुबंध अत्यधिक भरोसे पर आधारित होता है। ऐसे में जीवन बीमा लेने के इच्छुक लोगों के लिये हर वैसी जानकारियों का खुलासा करना उनका दायित्व हो जाता है, जिनका संबंधित मुद्दों पर किसी प्रकार का असर हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के इस साल मार्च के एक फैसले को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की। एक बीमा कंपनी ने मृतक की माता को ब्याज के साथ दावे की पूरी राशि का भुगतान करने के आदेश के खिलाफ आयोग में याचिका दायर की थी, जिसे आयोग ने खारिज कर दिया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रस्ताव के फॉर्म में पुरानी बीमारियों का अलग से खुलासा करने की जरूरत होती है, ताकि बीमा करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर एक विचारशील निर्णय पर पहुंचने में सक्षम हो सके। इस पीठ में जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी भी शामिल रहीं। पीठ ने कहा, ‘बीमे का अनुबंध अत्यधिक भरोसे पर आधारित होता है। यह बीमा लेने के इच्छुक हर व्यक्ति का दायित्व हो जाता है कि वह संबंधित मुद्दे को प्रभावित करने वाली सारी जानकारियों का खुलासा करे, ताकि बीमा करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर किसी विवेकपूर्ण निर्णय पर पहुंच सके।’ बीमा कंपनी ने आयोग के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी। राष्ट्रीय आयोग ने संबंधित मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि बीमा लेने वाले व्यक्ति ने अपनी पुरानी बीमारियों के बारे में जानकारियों का खुलासा नहीं किया था। उसने यह भी नहीं बताया था कि बीमा लेने के महज एक महीने पहले उसे खून की उल्टियां हुई थीं। पीठ ने कहा, ‘बीमा कंपनी के द्वारा की गयी जांच में पता चला है कि बीमा धारक पुरानी बीमारियों से जूझ रहा था, जो लंबे समय तक शराब का सेवन करने के कारण उसे हुई थीं। उसने उन तथ्यों की भी जानकारी बीमा कंपनी को नहीं दी थी, जिनके बारे में वह अच्छे से अवगत था।’