Independence Day 2025 : तुम गोली मारो, हम झंडा फहराएंगे... जब आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे बाबू सूरजभान
स्वतंत्रता आंदोलन में समालखा क्षेत्र से बाबू सूरजभान गुप्ता का नाम अग्रणी पंक्ति के देश भक्तों में लिया जाता है। भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेते हुए 20 अगस्त, 1932 को जान की परवाह किए बगैर उन्होंने समालखा रेलवे रोड पर स्थित डाकखाने पर तिरंगा फहराया था।
गांव आट्टा में लाला बनवारी लाल के घर सूरजभान का जन्म हुआ। इनके पिता एक आदर्शवादी और सिद्धांत प्रिय व्यक्ति थे। देशभक्ति की प्रेरणा उनको परिवार से पुरस्कार स्वरूप ही मिली थी। आरंभिक शिक्षा इन्होंने समालखा से ही प्राप्त की। बाबू जी साइकिल से हर सप्ताह सोमवार को कालेज जाते और शनिवार को वापस आते थे। उस दौरान आजादी के लिए पूरे देश में आंदोलन की लहर चल रही थी। बाबू सूरजभान गांधी जी की प्रेरणा से भारतीय कांग्रेस के सदस्य बन गए। वह समालखा और आसपास के गांवों में कांग्रेस का झंडा बुलंद करते हुए आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन को प्रचारित और प्रसारित करते हुए बाबू सूरजभान गांव-गांव में पहुंचे।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधी जी के आदेशानुसार 20 अगस्त को देशभर मे सभी कांग्रेसियों को अपने-अपने शहरों में सरकारी भवनों से ब्रिटेन का झंडा उतारकर तिरंगा फहराना था। समालखा में उस समय सरकारी भवन के नाम पर केवल डाकखाना था, जिस पर तिरंगा फहराने का कार्य बाबू सूरजभान को सौंपा गया। तत्कालीन थानाध्यक्ष ने सूरजभान को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर झंडा फहराने की कोशिश करोगे तो सरकार ने गोली मारने के आदेश दे रखे हैं। उस पर सूरजभान ने पलटकर जवाब दिया कि आपकी सरकार के आदेश गोली मारने के होंगे, लेकिन हमारी सरकार के आदेश झंडा फहराने के है। 20 अगस्त, 1942 को उनको डाकखाने पर झंडा फहराने के जुर्म में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कुछ समय उनको करनाल जेल में रखा गया। उसके बाद अंबाला जेल भेज दिया गया।
देश आजाद होने के बाद बाबू सूरजभान गुप्ता गांव आट्टा से समालखा आकर बस गए। उसके बाद 1948 में उन्होंने अपनी लग्न और यत्न से हरियाणा (तत्कालीन पंजाब) के समालखा में सर्वप्रथम चारा काटने की मशीन बनाने की फैक्टरी जयहिंद आयरन फाउंड़ी की शुरुआत की। बाबू सूरजभान गुप्ता को फाउंडर आफ फाउंड्रीस भी कहा गया। उन्हीं के मार्गदर्शन और प्रेरणा लेकर समालखा में 120 चारा काटने की मशीनों के कारखानों का शुभारंभ हुआ था। 1962 में भारत-चीन की लड़ाई में सर्वप्रथम उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो को 4,100 रुपये देश के वीर शहीदों के लिए भेजे थे। सरकार द्वारा उनको स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सरकार द्वारा सुविधा प्रदान की जा रही थी।
हालांकि उन्होंने इसे नहीं लिया और कहा कि आजादी के लिए दी गई कुर्बानी की कीमत वे नहीं लें सकते। इसमें 4 मुरब्बे जमीन उनको दी जानी थी। 1962 में स्वतंत्रता सेनानी के पेंशन के फार्म भी भरने से उन्होंने इंकार कर दिया था। क्षेत्र के युवकों को आजादी की राह दिखाने वाला यह दीपक 14 मार्च, 1966 को खुद ही सदा-सदा के लिए बुझ गया। समालखा वासिसों को बाबू जी का त्याग और देशप्रेम अब भी मार्गदर्शन कर रहा है। बाबू सुरजभान गुप्ता के पुत्र एवं पूर्व पार्षद सत्यप्रकाश गर्ग आज भी समाज सेवा में कार्यरत है।