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गोंडा में ‘बाबा के नाम पर ही दे दे, बाबा’!

कृष्ण प्रताप सिंह गोंडा। ‘बाबा के नाम पर ही दे दे, बाबा’! अयोध्या की पड़ोसन इस लोकसभा सीट पर आमने-सामने खड़े मनकापुर के स्वर्गीय महाराजा राघवेन्द्रप्रताप सिंह के पोते कीर्तिवर्धन सिंह (भाजपा) और पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनीप्रसाद वर्मा की पोती...

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कृष्ण प्रताप सिंह

गोंडा। ‘बाबा के नाम पर ही दे दे, बाबा’! अयोध्या की पड़ोसन इस लोकसभा सीट पर आमने-सामने खड़े मनकापुर के स्वर्गीय महाराजा राघवेन्द्रप्रताप सिंह के पोते कीर्तिवर्धन सिंह (भाजपा) और पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनीप्रसाद वर्मा की पोती श्रेया वर्मा (सपा) कुछ इसी अंदाज में मतदाताओं से मुखातिब हैं। मतदाता उनका यह अंदाज देख मूछों में मुस्कुरा रहे हैं।

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दरअसल, राघवेन्द्रप्रताप महात्मा गांधी के समकालीन और अनुयायी थे। 1929 में उन्होंने महात्मा को अपने राजमहल बुलाया तो उन्हें रेलवे-स्टेशन से अपनी राजसी बग्घी पर ले आये और चार हजार रुपयों की थैली भेंट की थी। तब उनके बेटे आनन्द सिंह ने महात्मा के पांव छूकर जो आशीर्वाद लिया, वह आगे चलकर ऐसा फला कि उन्होंनेे 1971, 1980, 1984 और 1889 में 4 बार कांग्रेस के टिकट पर यह सीट जीती। लेकिन आनंद के बेटे कीर्तिवर्धन की बारी आई तो कांग्रेस का हाल खस्ता हो चला। सो उन्होंने उसे छोड़ दिया और 1998 व 2004 में सपा के टिकट पर सांसद बने। मोदी युग आया तो फिर पलटी मारकर 2014 व 2019 में भाजपा से जीते। इस बार वे फिर भाजपा प्रत्याशी हैं और कड़ी लड़ाई में अपने बाबा की उस कांग्रेस विरासत से लाभ के प्रबल आकांक्षी हैं, जिसे दशकों पहले छोड़ चुके हैं।

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उनकी प्रतिद्वंद्वी सपा की श्रेया वर्मा के बाबा बेनीप्रसाद वर्मा देश की देवगौड़़ा व मनमोहन और यूपी की मुलायम सरकार में मंत्री, सपा के संस्थापक सदस्य और 1996 से 2004 तक कैसरगंज से सांसद रहे हैं। बाद में मुलायम से खफा होकर अलग पार्टी बनाई, जो फ्लॉप हो गयी तो कांग्रेस में चले गये। 2009 में गोंडा के सांसद बने। लेकिन अगला चुनाव हार गये तो घरवापसी कर ली। अब एक ओर श्रेया उनकी विरासत को अपनी सुविधा बनाए हुए हैं तो पीठ पीछे कई लोग उसे इधर-उधर मुंह मारने वाली विरासत बता रहे हैं।

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