नयी दिल्ली, 14 मई (एजेंसी)
घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के उपायों के तहत केंद्र सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। विपक्ष एवं कई किसान संगठनों ने इस फैसले का विरोध किया है।
विदेश व्यापार महानिदेशालय ने अधिसूचना में कहा कि गेहूं की निर्यात नीति पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाता है। हालांकि, जिस खेप के लिए अपरिवर्तनीय ऋण पत्र (एलओसी) जारी किए जा चुके हैं, उसके निर्यात की अनुमति होगी। यह भी स्पष्ट किया गया है कि भारत सरकार द्वारा अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा जरूरतें पूरा करने के लिए और उनकी सरकारों के अनुरोध के आधार पर गेहूं के निर्यात की अनुमति दी जाएगी। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण गेहूं की वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान के मद्देनजर निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है। रूस और यूक्रेन गेहूं के प्रमुख निर्यातक रहे हैं।
2020-21 में भारत का गेहूं उत्पादन 10.959 करोड़ टन रहा है। पिछले वित्त वर्ष में देश ने 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था और इस वर्ष एक करोड़ टन निर्यात करने की योजना थी। वाणिज्य मंत्रालय ने हाल ही में कहा था कि भारत गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए नौ देशों- मोरक्को, ट्यूनीशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड, वियतनाम, तुर्की, अल्जीरिया और लेबनान में व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेजेगा।
इस बीच, एक अलग अधिसूचना में डीजीएफटी ने प्याज के बीज के लिए निर्यात शर्तों को आसान बनाने की घोषणा की। डीजीएफटी ने कहा, ‘प्याज के बीज की निर्यात नीति को सीमित श्रेणी के तहत रखा जाता है।’ पहले इसका निर्यात प्रतिबंधित था।
कांग्रेस ने कहा- ‘किसान विरोधी’ कदम
उदयपुर : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा, ‘केंद्र सरकार पर्याप्त गेहूं खरीदने में विफल रही है। अगर पर्याप्त खरीद की गई होती तो गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। यह किसान विरोधी कदम है। मुझे हैरानी नहीं है, क्योंकि यह सरकार कभी भी किसान हितैषी नहीं रही।’
भारत कृषक समाज नाखुश : किसान संगठन भारत कृषक समाज (बीकेएस) ने फैसले पर नाखुशी जताई है। बीकेएस के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने कहा, ‘पाबंदी लगाने के कारण कृषि उत्पादों की मूल कीमत कम हो जाती है और किसानों को लाभ नहीं मिल पाता। व्यापारी, किसान गेहूं का भंडार खो देंगे।’
सरकारी खरीद 44% कम
- निजी व्यापारियों द्वारा भारी उठान और पंजाब-हरियाणा में कम आवक के कारण मौजूदा रबी विपणन सत्र में एक मई तक भारत की गेहूं खरीद 44 प्रतिशत घटकर 1.62 लाख टन रह गई है। सरकार ने एक साल पहले की अवधि में 2.88 लाख टन गेहूं की खरीद की थी।
- केंद्र ने विपणन वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड 4.44 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा है, जबकि पिछले विपणन वर्ष में यह 4.33 लाख टन था।
- कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक, फसल वर्ष 2021-22 (जुलाई-जून) में रिकॉर्ड 11.13 लाख टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है।
निजी कारोबारी निराश, मिल मालिक खुश
बठिंडा (ट्रिन्यू) : गैसले से निजी कारोबारी नाखुश हैं। बठिंडा के निजी व्यापारी अंकुश अग्रवाल ने कहा, ‘अच्छा निर्यात होने की उम्मीद में निजी व्यवसाइयों ने ज्यादा गेहूं खरीदा था, लेकिन इस निर्णय से निराशा हुई।’ फाजिल्का के दविंदर ने कहा, ‘यह किसान विरोधी निर्णय है। किसानों को एमएसपी से ज्यादा कीमत मिल रही थी, लेकिन इस निर्णय से उनकी आय कम होगी।’ उधर, मिल मालिक फैसले से प्रसन्न हैं। आटा मिलों के संगठन आरएफएमएफआई ने कहा कि इससे घरेलू आपूर्ति को लेकर बाजार में ‘अनावश्यक घबराहट’ पर रोक लगेगी।
निर्णय की गलत व्याख्या नहीं की जानी चाहिए। फैसला बहुत सोच-विचार कर देश भर में खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों को देखते हुए लिया गया है। देश की खाद्य सुरक्षा प्रणाली की रीढ़ पीडीएस सुचारू रूप से चलेगी। गेहूं की उपलब्धता कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन कीमतें बढ़ रही हैं।
सुधांशु पांडे, केंद्रीय खाद्य सचिव