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सत्ता में आए तो चुनावी बॉन्ड पर बनेगी एसआईटी : कांग्रेस

नयी दिल्ली, 23 मार्च (एजेंसी) कांग्रेस ने शनिवार को दावा किया कि चुनावी बॉन्ड ‘प्रीपेड रिश्वत और ‘पोस्टपेड रिश्वत’ का मामला है और इसकी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच होनी चाहिए। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी...
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नयी दिल्ली, 23 मार्च (एजेंसी)

कांग्रेस ने शनिवार को दावा किया कि चुनावी बॉन्ड ‘प्रीपेड रिश्वत और ‘पोस्टपेड रिश्वत’ का मामला है और इसकी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच होनी चाहिए। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि ‘चंदादाताओं का सम्मान, अन्नदाताओं का अपमान’ मौजूदा सरकार की नीति है। उन्होंने कहा कि केंद्र में ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकार बनने पर इस मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाएगा।

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रमेश ने संवाददाताओं से कहा, ‘पिछले महीने से ही भारतीय स्टेट बैंक इसका भरपूर प्रयास कर रहा था कि किसी तरह ‘चुनावी बॉन्ड’ से संबंधित आंकड़े जारी करने का समय 30 जून, 2024 तक टल जाए यानी आगामी लोकसभा चुनाव के काफ़ी बाद तक। यह संभवतः मोदी सरकार के इशारे पर किया जा रहा था।’ उन्होंने दावा किया, ‘सुप्रीम कोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी के बाद चंदा देनेवालों का मिलान करने में ‘पायथन कोड’ की मदद से 15 सेकंड से भी कम का समय लगा। इससे एसबीआई का यह दावा बेहद हास्यास्पद साबित हुआ है कि डेटा उपलब्ध कराने में उसे कई महीने लगेंगे।’

चुनावी बॉन्ड के पीछे मंशा अच्छी थी : गडकरी

अहमदाबाद (एजेंसी) : केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि बिना धन के राजनीतिक दल को चलाना संभव नहीं है और केंद्र ने चुनावी बॉन्ड योजना ‘अच्छे इरादे’ से शुरू की थी। केंद्र सरकार द्वारा 2017 में लायी इस योजना को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर और कोई निर्देश देता है तो सभी राजनीतिक दलों को एक साथ बैठने और इस पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है। गडकरी ने चुनावी बॉन्ड के बारे में एक सवाल पर कहा, ‘जब अरुण जेटली केंद्रीय वित्त मंत्री थे तो मैं चुनावी बॉन्ड से जुड़ी बातचीत का हिस्सा था। कोई भी पार्टी संसाधनों के बगैर नहीं चल सकती। कुछ देशों में सरकारें राजनीतिक दलों को चंदा देती हैं। भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए हमने राजनीतिक दलों के वित्त पोषण की इस व्यवस्था को चुना।’ उन्होंने कहा कि चुनावी बॉन्ड लाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य यह था कि राजनीतिक दलों को सीधे चंदा मिले लेकिन दानदाताओं के नामों का खुलासा न किया जाए क्योंकि ‘अगर सत्तारूढ़ दल बदलता है तो समस्याएं पैदा होंगी।’

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