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जब महिला न कहे, तो मतलब नहीं ही होता है : हाईकोर्ट

गैंगरेप मामले में तीन दोषियों की दोषसिद्धि बरकरार
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मुंबई, 8 मई (एजेंसी)

बंबई हाईकोर्ट ने एक सहकर्मी से सामूहिक दुष्कर्म करने के मामले में तीन पुरुषों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है और कहा कि जब कोई महिला ‘नहीं’ कहती है, तो इसका मतलब ‘नहीं’ ही होता है, तथा उसकी पिछली यौन गतिविधियों के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। जस्टिस नितिन सूर्यवंशी और जस्टिस एमडब्ल्यू चांदवानी की पीठ ने फैसले में कहा,’नहीं का मतलब नहीं होता है।’ पीठ ने दोषियों द्वारा पीड़िता की नैतिकता पर सवाल उठाने के प्रयास को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि महिला की सहमति के बिना यौन संबंध बनाना उसके शरीर, मन और निजता पर हमला है। अदालत ने बलात्कार को समाज में नैतिक व शारीरिक रूप से सबसे निंदनीय अपराध बताया। अदालत ने तीनों व्यक्तियों की दोषसिद्धि को रद्द करने से इनकार कर दिया, लेकिन उनकी सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 20 वर्ष कर दिया। याचिका में तीनों व्यक्तियों ने दावा किया था कि महिला शुरू में उनमें से एक के साथ संबंध में थी, लेकिन बाद में वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ ‘सहजीवन साथी’ के तौर पर रहने लगी। नवंबर] 2014 में तीनों ने पीड़िता के घर में घुसकर उसके साथ रहने वाले पुरुष साथी पर हमला किया और महिला को जबरन पास के एक सुनसान स्थान पर ले गए, जहां उन्होंने उससे बलात्कार किया। पीठ ने फैसले में कहा कि भले ही एक महिला अलग हो गई हो और अपने पति से तलाक लिए बिना किसी अन्य व्यक्ति के साथ रह रही हो, तो भी कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।

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