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कम मतदान वाली 266 संसदीय सीटों की पहचान

वोटिंग बढ़ाने की कोशिश में निर्वाचन आयोग

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नयी दिल्ली, 5 अप्रैल (एजेंसी)

निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को कहा कि उसने कम मतदान वाले कुल 266 संसदीय क्षेत्रों की पहचान की है और वह लोकसभा चुनावों में इन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए योजना बना रहा है। इन 266 संसदीय क्षेत्रों में से 215 ग्रामीण इलाकों में हैं। प्रमुख शहरों के नगर निगम आयुक्तों और बिहार और उत्तर प्रदेश के चुनींदा जिला चुनाव अधिकारियों (डीईओ) ने चिह्नित शहरी और ग्रामीण लोकसभा सीटों में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने पर यहां चर्चा की।

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निर्वाचन आयोग ने कम मतदान को लेकर आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि कम मतदान वाले 266 संसदीय क्षेत्रों की पहचान की गई है जिनमें से 215 ग्रामीण और 51 शहरी क्षेत्र हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, तेलंगाना, गुजरात, पंजाब, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर और झारखंड सहित 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 2019 के लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय औसत 67.40 प्रतिशत से कम मतदान हुआ था। प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने जोर देकर कहा कि ‘एक जैसा रुख सभी के लिए उपयुक्त है’ वाला दृष्टिकोण इस मामले में काम नहीं आएगा। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों और खंडों के लिए अलग-अलग रणनीतियों पर काम करने की वकालत की। सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए मतदान 19 अप्रैल से शुरू होगा। मतों की गिनती चार जून को होगी। कुमार ने मतदान केंद्रों पर सुविधा प्रदान करने की तीन-आयामी रणनीति पर जोर दिया। जैसे कि कतार प्रबंधन, भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में छायादार पार्किंग, लक्ष्य के साथ लोगों तक पहुंच और संपर्क सुनिश्चित करना और मतदान के दिन लोगों को मतदान केंद्रों पर आने के लिए राजी करने के लिए आरडब्ल्यूए, स्थानीय आइकन और युवाओं को प्रभावित करने वाले लोगों सहित महत्वपूर्ण हितधारकों की भागीदारी आदि। आयोग ने याद किया कि लगभग 29.7 करोड़ पात्र मतदाताओं ने 2019 के लोकसभा चुनावों में मतदान नहीं किया था, जो समस्या के स्तर और सक्रिय उपाय किए जाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। पिछले लोकसभा चुनाव में जिन 50 सीटों पर सबसे कम मतदान हुआ था, उनमें से 17 सीटें महानगरों या बड़े शहरों की थीं। इसमें कहा गया है कि विभिन्न राज्यों में हाल के चुनावों ने चुनावी प्रक्रिया के प्रति शहरी उदासीनता के रुझानों को सामने लाया और इसमें सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया।

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