हरियाणा कांग्रेस में लंबे समय से चल रहा नेतृत्व विवाद आखिरकार खत्म हो गया है। पार्टी आलाकमान ने सोमवार को औपचारिक आदेश जारी करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को एक बार फिर कांग्रेस विधायक दल का नेता (सीएलपी लीडर) और राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री राव नरेंद्र सिंह को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी का नया अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। दोनों की नियुक्ति तत्काल प्रभाव से लागू मानी जाएगी।
हरियाणा कांग्रेस में पिछले करीब एक साल से संगठनात्मक और विधायक दल के नेता की नियुक्ति को लेकर खींचतान चल रही थी। गुटबाजी और आपसी मतभेदों के कारण यह मामला बार-बार टलता रहा। लेकिन अब दिल्ली दरबार ने साफ संदेश देते हुए संगठन में बड़ा फेरबदल कर दिया है। इस फैसले के साथ ही कांग्रेस ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले अपनी रणनीति स्पष्ट कर दी है कि विपक्ष का चेहरा भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही होंगे। वहीं, संगठन की बागडोर दक्षिण हरियाणा के नेता और हुड्डा के प्रभाव में रहे राव नरेंद्र सिंह के पास रहेगी।
कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कद किसी से छुपा नहीं है। वह 2005 से 2014 तक लगातार दो कार्यकाल मुख्यमंत्री रहे और 2019 से 2024 तक सीएलपी लीडर के तौर पर विपक्ष के नेता की भूमिका निभा चुके हैं। संगठन में गुटबाजी और लगातार बदलते समीकरणों के बीच भी हुड्डा अपनी पकड़ मजबूत बनाए हुए थे। यही कारण है कि हाईकमान ने एक बार फिर विपक्ष की अगुवाई का जिम्मा उन्हीं को सौंपा।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि हरियाणा में कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को देखते हुए अनुभवी और लोकप्रिय चेहरा पेश करना पार्टी के लिए जरूरी था। हुड्डा की छवि किसान-पक्षधर नेता की है और वह राज्य की सियासत में व्यापक स्वीकार्यता रखते हैं।
सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश
नारनौल से विधायक रह चुके राव नरेंद्र सिंह ओबीसी समुदाय से आते हैं। उन्हें हुड्डा का करीबी माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ समय में उन्होंने अपने दायरे को और बढ़ाने की कोशिश की। बताया जाता है कि उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री व सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला से भी तालमेल बढ़ाने के प्रयास किए। वह सुरजेवाला को विश्वास में लेने की कोशिश में सक्रिय दिखे, ताकि प्रदेश कांग्रेस में अपनी स्वीकार्यता को व्यापक बना सकें। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह नियुक्ति कांग्रेस की सामाजिक और क्षेत्रीय रणनीति का हिस्सा है। पार्टी ने ओबीसी मतदाताओं को साधने की कोशिश की है, जो राज्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।