अदिति टंडन/ ट्रिन्यूनयी दिल्ली, 1 मार्चभारत की सुरक्षा चुनौतियों के बहुआयामी स्वरूप पर शनिवार को यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में विस्तृत चर्चा हुई। इसमें जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने विशेष रूप से आंतरिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और गृह मंत्रालय में सुधार का आह्वान किया। उन्होंने सुझाव दिया कि गृह मंत्रालय का नाम बदलकर 'आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय' किया जा सकता है।आईएएस अधिकारी के रूप में केंद्रीय रक्षा सचिव और केंद्रीय गृह सचिव रह चुके वोहरा ने सैन्य इतिहास, विशेष रूप से 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारतीय सेना के संचालन की समीक्षा करने वाली हेंडरसन ब्रूक्स-भगत रिपोर्ट सहित कई रक्षा दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग की। उन्होंने पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस द्वारा युद्ध इतिहास को सार्वजनिक करने के प्रयासों को याद किया और बताया कि वे उस समिति का हिस्सा थे, जिसने प्रमुख युद्ध इतिहासों के प्रकाशन की सिफारिश की थी, लेकिन यह कार्य आज तक पूरा नहीं हुआ। हालांकि, भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा 1962, 1965 और 1971 के युद्ध इतिहासों का संकलन रक्षा मंत्रालय के इतिहास प्रभाग के कहने पर इतिहासकारों द्वारा किया गया, लेकिन इन दस्तावेजों का प्रकाशन बाधित रहा है। वोहरा ने कहा, हमें लोगों के लाभ के लिए इन दस्तावेजों को प्रकाशित करना चाहिए।उन्होंने यह भी कहा कि एक 'व्यापक, स्पष्ट, सुविचारित, गैर-राजनीतिक और द्विदलीय राष्ट्रीय सुरक्षा नीति' आवश्यक है, जो भारत के आंतरिक सुरक्षा सिद्धांत, सैन्य सिद्धांत और संयुक्त युद्ध सिद्धांत का आधार प्रदान करे। पूर्व राज्यपाल ने जोर देकर कहा कि इस नीति के दायरे में सुरक्षा संबंधी संस्थानों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। यह विचार उन्होंने अपनी संपादित पुस्तक 'इंडियाज नेशनल सिक्योरिटी चैलेंजेज' पर चर्चा के दौरान व्यक्त किया। पिछले वर्ष प्रकाशित इस पुस्तक में दस अध्याय हैं, प्रत्येक का लेखन सामरिक और सैन्य क्षेत्र के विशेषज्ञों ने किया है। इसमें भविष्य की राह को रेखांकित किया गया है।इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के अध्यक्ष श्याम सरन की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में, कैबिनेट सचिवालय के पूर्व विशेष सचिव राणा बनर्जी, लेखक सी. राजा मोहन और इंद्राणी बागची जैसे विशेषज्ञों ने सुरक्षा एजेंसियों की जवाबदेही की जरूरत पर जोर दिया। रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) से जुड़े रहे बनर्जी ने खुफिया एजेंसियों की संसदीय निगरानी की मांग की।पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य और बाद में आंतरिक सुरक्षा पर नेशनल टास्क फोर्स के अध्यक्ष रहे एनएन वोहरा ने गृह मंत्रालय में व्यापक सुधारों की सिफारिश की। उन्होंने सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए गृह मंत्रालय और केंद्रीय बलों पर राज्य सरकारों की अत्यधिक निर्भरता को चिन्हित किया और कहा कि एक मंत्रालय के रूप में गृह मंत्रालय में सुधार की आवश्यकता है, जिससे इसे विविध जिम्मेदारियों से मुक्त किया जा सके और पूरी तरह से आंतरिक सुरक्षा, शांति और सामान्य स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। वोहरा ने सुझाव दिया कि संभवत: गृह मंत्रालय का नाम बदलकर आंतरिक सुरक्षा मामलों का मंत्रालय रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय को आंतरिक सुरक्षा मामलों के लिए 24 घंटे, सातों दिन, 365 दिन समर्पित होना चाहिए, जो बाहरी सुरक्षा से भी गहराई से जुड़े हैं।भारत के बहुभाषी, बहुधर्मी और विविध सांस्कृतिक समाज की ओर संकेत करते हुए, वोहरा ने कहा कि यदि संवेदनशील शासन से इसे न संभाला जाए तो यह अंतर्निहित विरोधाभास संघर्ष का रूप ले सकता है। उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पर केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय पर जोर दिया।पूर्व राज्यपाल ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में तैयार की गयी नीति के पहले मसौदे को याद करते हुए कहा, 'यह नीति नयी या अज्ञात नहीं है। इस पर वर्षों से बहस चल रही है... हाल ही में एक कार्यक्रम में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ने मेरे सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि कुछ बनाया जा रहा है...।'आंतरिक और बाहरी सुरक्षा चुनौतियों पर वोहरा ने नये युग के खतरों को चिन्हित किया, जिसमें अज्ञात और अदृश्य शत्रु शामिल हैं, जो एक पल में राष्ट्रीय रक्षा और आर्थिक क्षमताओं को बेअसर कर सकते हैं। पूर्व राज्यपाल ने चेतावनी दी कि 'सीमाओं पर बढ़ते खतरों और आंतरिक समस्याओं के अलावा, हमें नये खतरों- ड्रोन, एआई आदि के लिए तैयार रहना होगा। हम निष्क्रिय नहीं बैठ सकते। ये अज्ञात और अदृश्य शत्रु युद्धों से अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं।उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में खाद्य और जल सुरक्षा से लेकर आर्थिक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सुरक्षा तक सभी क्षेत्रों को शामिल करना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने हाल के वर्षों में रक्षा बजट की अत्यधिक कमी की ओर भी ध्यान दिलाया और कहा, 'रक्षा वित्त पोषण को निरंतरता और स्थायित्व की आवश्यकता है।'