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Holi 2025 : भगवान शिव के पैर न जल जाएं इसलिए 5000 वर्षों से इस गांव में नहीं हुआ होलिका दहन

उत्तर प्रदेश के इस गांव में होलिका दहन नहीं होता , सदियों से चली आ रही महाभारत कालीन शिव मंदिर से जुड़ी प्राचीन परंपरा
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सहारनपुर, 13 मार्च (भाषा)

Holi 2025 : उत्तर प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित एक गांव में होलिका दहन नहीं होने की सदियों पुरानी परंपरा आज भी कायम है। सहारनपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर, नानोता क्षेत्र के बरसी गांव के लोग अपने पूर्वजों की इस परंपरों को आज भी जारी रखे हुए हैं।

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भगवान शिव से जुड़ा कनेक्शन

गांव वालों में मान्यता रही है कि गांव के बीचों-बीच स्थित एक एक महाभारत कालीन शिव मंदिर है और इस प्राचीन मंदिर में भगवान शिव खुद विराजमान हैं और यहां तक कि वह इसकी सीमा के भीतर विचरण भी करते हैं। लोग मानते हैं कि इस डर से सालों से होलिका नहीं जलाई जाती कि आग जलाने से जमीन गर्म हो जाएगी और भगवान के पैर झुलस जाएंगे।

सदियों से चली आ रही प्रथा

यह मान्यता पीढ़ियों से चली आ रही है, जिसके कारण एक अनूठी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा आज भी जारी है। ग्राम प्रधान आदेश कुमार कहते हैं, "हमारे पूर्वजों ने इस परंपरा को अटूट विश्वास के साथ कायम रखा है और हम उनके पदचिन्हों पर चलते रहेंगे।" स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, गांव में स्थित इस मंदिर का निर्माण दुर्योधन ने महाभारत के युद्ध के दौरान रातों-रात करवाया था।

भगवान श्री भी हो गए थे इस मंदिर पर मोहित

पौराणिक मान्तया है कि जब अगली सुबह भीम ने इसे देखा, तो उन्होंने अपनी गदा से इसके मुख्य द्वार को पश्चिम की ओर मोड़ दिया। ऐसा दावा भी किया जाता है कि यह देश का एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है जो पश्चिममुखी है। गांव वाले इस तरह की एक किंवदंती भी सुनाते हैं कि महाभारत के युद्ध के दौरान, भगवान कृष्ण कुरुक्षेत्र जाते समय इस गांव से गुजरे थे और इसकी सुंदरता से मंत्रमुग्ध होकर, उन्होंने इसकी तुलना पवित्र बृज भूमि से की थी।

दूसरे गांव में होली दहन करते हैं गांव के लोग

देशभर में जहां होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानते हुए होली उत्सव के अनिवार्य हिस्से के रूप में शामिल किया गया है, वहीं बरसी गांव ने स्वेच्छा से इस प्रथा को छोड़ दिया है। हालांकि गांव वाले होलिका दहन में भाग लेने के लिए आस-पास के गांवों में जाते हैं और अपने गांव में रंगों के त्योहार को भक्ति और खुशी के साथ परंपरागत तरीके से ही मनाते हैं।

5,000 वर्षों से चली रही परंपरा

गांव के निवासी रवि सैनी कहते हैं, ‘‘यहां कोई भी भगवान शिव की साक्षात उपस्थिति को नहीं मानने का जोखिम नहीं उठाना चाहता है। माना जाता है कि यह परंपरा करीब 5,000 वर्षों से चली आ रही है और आने वाली पीढ़ियों में भी जारी रहेगी।'' मंदिर के पुजारी नरेंद्र गिरि ने बताया कि इस शिव मंदिर की महिमा दूर-दूर तक है और बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा करने आते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘महाशिवरात्रि के दौरान हजारों श्रद्धालु यहां अभिषेक करने आते हैं। नवविवाहित जोड़े भगवान शिव का आशीर्वाद लेते हैं।''

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