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History of Kumbh Mela : अमृत कलश से गिरी बूंदें तब हुआ महाकुंभ मेले का आरंभ, पढ़ें कुंभ से जुड़ी पौराणिक कहानी

History of Kumbh Mela : अमृत कलश से गिरी बूंदें तब हुआ महाकुंभ मेले का आरंभ, पढ़ें कुंभ से जुड़ी पौराणिक कहानी
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चंडीगढ़ , 17 जनवरी (ट्रिन्यू)

History of Kumbh Mela : भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का प्रतीक कुंभ मेला महज एक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय अध्यात्म, आस्था और परंपराओं का जीवंत उदाहरण है। कुंभ मेले का हर रूप-चाहे वह अर्ध कुंभ हो, पूर्ण कुंभ हो या महाकुंभ-अपने आप में एक अनूठा महत्व और आकर्षण रखता है। कुंभ मेला चार प्रमुख तीर्थ स्थलों- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है। इस बार महाकुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित किया गया है, जिसमें स्नान करने के लिए विदेशों से भी लोग आ रहे हैं।

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कुंभ मेला हर 12 साल में किसी एक तीर्थ स्थल पर आयोजित किया जाता है और इन स्थानों पर पवित्र नदियों के संगम का विशेष महत्व होता है। प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती, हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में क्षिप्रा और नासिक में गोदावरी नदी का संगम इस मेले को और भी पवित्र बनाता है।

महाकुंभ की पौराणिक कहानी

महाकुंभ मेले की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और राक्षस मिलकर क्षीर सागर का समुद्र मंथन कर रहे थे तब उसमें से अमृत कलश निकला था। अमृत को राक्षसों से बचाने के लिए इंद्र के बेटे जयंत उसे हाथ में पकड़कर आकाश में उड़ गया। जब वह आकाश से जा रहे था, तभी कलश में से चार बूंदे धरती के चार स्थान, प्रयागराज, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार में गिर गई, जिससे ये स्थान पवित्र हो गए। हिंदू धर्म में देवताओं का एक दिन पृथ्वी के 12 वर्षों के बराबर माना जाता है, इसलिए इन 4 जगहों पर हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेला 2025 के दौरान श्रद्धालु संगम में पवित्र डुबकी लगाते हुए। पीटीआई फोटो

चलिए आपको बताते हैं कि देश में कुंभ कितनी तरह के होते हैं और इनमें फर्क क्या है...

अर्ध कुंभ

अर्ध कुंभ हर छह साल में प्रयागराज और हरिद्वार में ही आयोजित होता है। ‘अर्ध’ का अर्थ है ‘आधा’ और इस आयोजन को पूर्ण कुंभ के बीच में आने वाले धार्मिक मेले के रूप में देखा जाता है। यह मेला श्रद्धालुओं के लिए एक अवसर है, जहां वे अपने धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन में प्रगति कर सकते हैं। साधु-संतों की संगति में बैठकर ज्ञान अर्जित करना और संगम में स्नान करके अक्षय पुण्य अर्जित करना अर्ध कुंभ की विशेषता है।

पूर्ण कुंभ

पूर्ण कुंभ 12 साल के अंतराल पर आयोजित होता है और सभी चार तीर्थ स्थलों पर बारी-बारी से आयोजित किया जाता है। इस मेले को ‘पूर्ण’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह 12 साल के चक्र का समापन करता है। प्रयागराज में आयोजित पूर्ण कुंभ का महत्व विशेष रूप से अधिक है। माना जाता है कि यहां संगम में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और साधक जीवन में मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है।

प्रयागराज: नागा साधुओं ने मंगलवार को प्रयागराज में महाकुंभ 2025 के दौरान 'मकर संक्रांति' के अवसर पर त्रिवेणी संगम पर 'अमृत स्नान' किया। एएनआई फोटो

महाकुंभ

प्रयागराज में हर 144 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है। यह 12 पूर्ण कुंभ के बाद आता है और इसलिए इसे ‘महाकुंभ’ का दर्जा प्राप्त है। इस आयोजन का महत्व इतना अधिक है कि इसे देखने और अनुभव करने के लिए दुनिया भर से करोड़ों लोग आते हैं। महाकुंभ एक ऐसा आयोजन है, जहां अध्यात्म और विज्ञान का अद्भुत संगम होता है। कुंभ के दौरान ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिसे ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

कैसे लिया जाता है कुंभ के आयोजन का निर्णय?

कुंभ मेले का स्थान और समय ज्योतिषीय गणना के आधार पर निर्धारित किया जाता है। इसमें प्रमुख ग्रहों सूर्य और बृहस्पति (गुरु) की स्थिति को ध्यान में रखा जाता है। कुंभ का आयोजन तब होता है, जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष या सिंह राशि में स्थित होता है। इस प्रकार, कुंभ मेले का प्रत्येक आयोजन किसी ज्योतिषीय घटना से गहराई से जुड़ा होता है।

महाकुंभ 2025: एक अद्भुत आयोजन

महाकुंभ 2025 का आयोजन प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक किया गया है, जिसमें छह शाही स्नान होंगे। इस आयोजन का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और एकता को प्रदर्शित करने का अवसर भी है।

कुंभ मेला न केवल हमारी धार्मिक मान्यताओं को प्रकट करता है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करता है। कुंभ का हर रूप, चाहे वह अर्ध कुंभ हो, पूर्ण कुंभ हो या महाकुंभ, हमें यह संदेश देता है कि आस्था और आध्यात्म की शक्ति अनंत है।

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