मुंबई, 10 जून (एजेंसी) बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र के मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता नवाब मलिक की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने राज्यसभा चुनाव में मतदान के लिए जेल से रिहा करने की अनुमति मांगी थी। मलिक ने याचिका में कहा था कि या तो उन्हें बांड पर हिरासत से रिहा किया जाए या मतदान के लिए पुलिस के साथ विधान भवन जाने की अनुमति दी जाए। न्यायमूर्ति पी. डी. नाइक की एकल पीठ ने कहा कि हालांकि, मलिक ने याचिका में ‘जमानत’ शब्द का उल्लेख नहीं किया है फिर भी उनकी याचिका का आशय जमानत की अनुमति ही था इसलिए उन्हें विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए अपील करनी चाहिए जिसने बृहस्पतिवार को मलिक को अस्थायी जमानत देने से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने कहा कि वह मलिक की याचिका को स्वीकार कर गलत उदाहरण पेश नहीं करना चाहता। इसके साथ ही पीठ ने मंत्री के वकील अमित देसाई को याचिका में संशोधन करने और फिर समुचित राहत पाने की याचना करने की अनुमति दी। मलिक की याचिका को बृहस्पतिवार को विशेष अदालत ने खारिज कर दिया था जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।