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IPS पूरन कुमार की आत्महत्या पर हरियाणा SC आयोग की सख्ती, DGP से मांगी ATR

IPS suicide case: चंडीगढ़ प्रशासन को सात दिन में रिपोर्ट सौंपने के आदेश, अधिकारियों पर कार्रवाई की चेतावनी

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IPS suicide case: हरियाणा के वरिष्ठ IPS अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले ने अब प्रशासनिक गलियारों में हलचल मचा दी है। हरियाणा राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने इस पूरे प्रकरण पर स्वयं संज्ञान लेते हुए चंडीगढ़ प्रशासन और पुलिस विभाग को कठोर नोटिस जारी किया है। आयोग ने चंडीगढ़ के मुख्य सचिव और डीजीपी से सात दिन के भीतर विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट (एक्शन टेकन रिपोर्ट ATR) मांगी है।

आयोग ने इस घटना को जातिगत भेदभाव, मानसिक उत्पीड़न और मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ा गंभीर मामला बताया है। आयोग ने स्पष्ट कहा कि यह सिर्फ आत्महत्या नहीं, बल्कि एक संवेदनशील सामाजिक-प्रशासनिक विफलता का संकेत है। आयोग द्वारा जारी नोटिस में दिवंगत अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या से पहले लिखे फाइनल नोट का हवाला देते हुए कहा गया कि वे अनुसूचित जाति समुदाय से थे और लंबे समय से वरिष्ठ अधिकारियों के जातिगत भेदभाव, मानसिक प्रताड़ना और सार्वजनिक अपमान का सामना कर रहे थे।

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नोट में यह भी उल्लेख है कि उन्हें यह सब वरिष्ठ अफसरों की मिलीभगत और दिशा-निर्देश में झेलना पड़ा। आयोग ने कहा कि यदि यह तथ्य जांच में सही पाए जाते हैं, तो यह SC-एसटी एक्ट, 1989 का स्पष्ट उल्लंघन होगा। इस मामले ने और तूल तब पकड़ा जब दिवंगत अधिकारी की आईएएस पत्नी अमनीत पी. कुमार ने सनसनीखेज आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि उनके पति को जानबूझकर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और कुछ अधिकारियों ने उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाया।

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आयोग ने इसे ‘अत्याचार और षड्यंत्र’ का गंभीर मामला बताते हुए जांच की दिशा बदलने के संकेत दिए हैं। आयोग ने इस मामले में दर्ज एफआईआर और एसआईटी के गठन से लेकर हर पहलू के बारे में जानकारी मांगी है। एफआईआर किन धाराओं और किन लोगों के खिलाफ दर्ज की गई। क्या आरोपित अधिकारियों को नामजद या गिरफ्तार किया गया है। क्या जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित की है। जांच में देरी के कारण को लेकर भी सवाल किया है।

SC-ST एक्ट की धाराओं में ढिलाई पर सख्त रोक

हरियाणा SC आयोग ने कहा है कि इस मामले में SC-ST अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 3(2)(v) सहित सभी प्रासंगिक धाराओं को पूरी कठोरता से लागू किया जाए। आयोग ने आदेश दिया है कि जांच रिपोर्ट हर 15 दिन में आयोग को भेजी जाए, ताकि कोई भी पहलू दबाया न जा सके। आयोग ने चेतावनी दी है कि यदि सात दिन के भीतर विस्तृत रिपोर्ट नहीं मिली या जवाब असंतोषजनक हुआ, तो एचएसएससी एक्ट, 2018 की धारा 9 के तहत संबंधित अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से तलब किया जाएगा। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह इस मामले को उदाहरण के तौर पर मिसाल बनाएगा, ताकि भविष्य में किसी अनुसूचित जाति अधिकारी के साथ इस तरह का व्यवहार दोहराया न जा सके।

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