दिनेश भारद्वाज
ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 9 दिसंबर। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा-जेजेपी गठबंधन सरकार का अब भी ‘फूड सिक्योरिटी कमीशन’ के गठन का मूड नहीं है। केंद्रीय एक्ट के बावजूद कमीशन का गठन नहीं करने वाला हरियाणा अकेला ही राज्य है। केंद्र में फूड सिक्योरिटी एक्ट लागू है, लेकिन राज्य की खट्टर सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान सत्ता में आते ही इस आयोग को भंग कर दिया था। उसके बाद से अभी तक मामला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में लंबित है। अब सरकार के निर्देशों पर फूड एंड सप्लाई डिपार्टमेंट ने फाइल चला दी है। यह फाइल फूड सिक्योरिटी गठन के लिए नहीं है बल्कि प्रदेश में काम कर रहे राइट-टू-सर्विस कमीशन को ही फूड सिक्योरिटी कमीशन का काम सौंपने से जुड़ी है। बताते हैं कि फाइल मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) में लंबित है। इस बार कानूनी राय भी ली जा रही है लेकिन कई कानूनी अड़चनों के चलते सरकार फैसला नहीं ले पा रही। सुप्रीम कोर्ट के 2016 के निर्देश भी सरकार के मंसूबों पर पानी फेर रहे हैं।
डॉ़ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2013 में फूड सिक्योरिटी एक्ट को संसद में पास किया था। इसके तहत सभी राज्यों में फूड सिक्योरिटी कमीशन का गठन होता था। पूर्व की हुड्डा सरकार ने 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद 8 अगस्त, 2014 को आयोग का गठन किया था। सेवानिवृत्त आईएएस और हुड्डा सरकार में सीएम के उपप्रधान सचिव रहे आरएस दून को आयोग का चेयरमैन लगाया गया। आयोग में महिला आईएएस अधिकारी रेणु फूलिया को सदस्य सचिव नियुक्त किया था।
केंद्रीय एक्ट के तहत आयोग में दो महिलाओं के अलावा एससी-एसटी सदस्य बनाए जाने अनिवार्य थे। रेणु फूलिया को महिला और एससी कोटे से सदस्य सचिव बनाया। वहीं सेवानिवृत्त आईएएस सतवंती अहलावत, डिफेंस से सेवानिवृत्त एडवोकेट हेमंत शर्मा, इंडियन रेवन्यू सर्विस के अधिकारी रहे बरमदीप सिंह तथा पशुपालन विभाग के महानिदेशक रहे केएस दांगी को आयोग का सदस्य बनाया। हरियाणा में एसटी नहीं हैं, इसीलिए इंडियन इक्नॉमिक सर्विस के अधिकारी रहे यशपाल को एससी कोटे से आयोग में सदस्य नियुक्त किया।
अक्तूबर-2014 में पहली बार पूर्ण बहुमत सत्ता में आई भाजपा सरकार ने 13 फरवरी, 2015 को आयोग को भंग कर दिया। आयोग सदस्यों ने सरकार के फैसले को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी। सरकार ने भंग करने के पीछे दलील दी थी कि आयोग में नियमों के हिसाब से किसी एसटी को सदस्य नहीं बनाया गया। हाईकोर्ट ने 11 फरवरी, 2015 को इस पूरे मामले पर स्टे दे दिया। तभी से मामला हाईकोर्ट में लंबित है। इस बीच 7 अगस्त, 2019 को आयोग का कार्यकाल भी पूरा हो चुका है। कुल मिलाकर आयोग चेयरमैन व सदस्यों को घर बैठे ही पांच साल का वेतन मिला।
नये सिरे से शुरू हुई कवायद
अब एक बार फिर फूड सिक्योरिटी कमीशन को लेकर नये सिरे से कवायद शुरू हो गई है। हुड्डा सरकार में ही बना राइट-टू-सर्विस कमीशन पहले की तरह चल रहा है। हालांकि इसके चेयरमैन व सदस्य अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। मौजूदा सरकार द्वारा लगाए गए सेवानिवृत्त आईएएस हरदीप कुमार ही अब आयोग में अकेले सदस्य हैं। अब सरकार इसी आयोग को फूड सिक्योरिटी कमीशन का काम देना चाहती है। इसके लिए फाइल चली हुई है और मुख्यमंत्री की मंजूरी के बाद इस पर आगे कार्यवाही संभव है।
यह है बड़ा कानूनी पेच
सेंट्रल एक्ट के सैक्शन-16 में स्पष्ट किया गया है कि हर राज्य को फूड सिक्योरिटी कमीशन का गठन करना होगा। यह अनिवार्य है। हरियाणा सरकार द्वारा फूड सिक्योरिटी कमीशन का काम राइट-टू-सर्विस कमीशन को सौंपने की तैयारियों में कानूनी अड़चन है। दरअसल, योगेंद्र यादव के संगठन स्वराज अभियान द्वारा इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल डाली गई थी। दरअसल, सरकार फूड सिक्योरिटी कमीशन का काम सूचना का अधिकार आयोग को देने की तैयारी में थी। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पीआईएल पर दी डायरेक्शन में स्पष्ट कहा कि फूड सिक्योरिटी कमीशन स्वतंत्र रहेगा। इसका काम किसी और को नहीं दिया जा सकता। ऐसे में खट्टर सरकार की यह मुहिम सिरे चढ़ती नहीं दिख रही।
राइट-टू-सर्विस कमीशन के पास काम नहीं
हरियाणा में लगभग छह वर्षों से राइट-टू-सर्विस कमीशन चल तो रहा है, लेकिन इसके पास कोई काम ही नहीं है। हुड्डा सरकार ने मुख्य सचिव पद से रिटायर हुए एससी चौधरी को आयोग का चेयरमैन लगाया था। उसी समय इसके सदस्य भी नियुक्त किए गए। सभी का कार्यकाल पूरा हो चुका है। हाल ही में मुख्य सचिव पद से रिटायर हुईं आईएएस केशनी आनंद अरोड़ा आयोग में चेयरपर्सन पद के लिए लॉबिंग कर रही हैं। कई अन्य आईएएस भी इस पद के लिए भाग-दौड़ में लगे हैं। लेकिन इस बात का सवाल सरकार के पास भी नहीं है कि जब आयोग के पास काम ही नहीं है तो फिर कई लाख रुपये मासिक का बोझ क्यों प्रदेश पर डाला जा रहा है।