हरियाणा दिवस एक राज्य का उदय या सभ्यता का पुनरुत्थान?
परवेश बामल
आज 1 नवंबर है। हम 60वां हरियाणा दिवस मना रहे हैं। चारों ओर उत्सव है, उपलब्धियों की गणना है और भविष्य के संकल्प हैं। यह सब आवश्यक है। लेकिन क्या यह अंकगणित इस भूमि की विशालता और इसके ऐतिहासिक प्रारब्ध के साथ न्याय करता है?
इतिहास को केवल तारीखों से मापना एक भूल है। हरियाणा का अस्तित्व तो तब से है, जब शायद ‘इतिहास’ शब्द का भी जन्म नहीं हुआ था। जब हम सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में पनप रही दूसरी शहरी क्रांति की बात करते हैं, तो उसका सबसे बड़ा केंद्र ‘राखीगढ़ी’ इसी भूमि पर था।
‘मनुस्मृति’ में इस भूमि को ‘ब्रह्मावर्त’– सरस्वती और दृशद्वती के बीच ‘देव-निर्मित’ प्रदेश– कहा गया है। यह वह भूमि थी जहां वेदों की ऋचाएं गूंजीं। ‘कुरुक्षेत्र’ की इसी मिट्टी ने ‘गीता’ के शाश्वत ज्ञान को जन्म दिया। महाभारत ने ही इसे ‘बहुधान्यक’ (अत्यधिक समृद्धि वाली भूमि) कहा। यह समृद्धि और सामरिक स्थिति ही इसका अभिशाप बनी। दिल्ली का ‘प्रवेश द्वार’ होने के कारण, इस भूमि ने जितना रक्तपात देखा, उतना शायद किसी ने नहीं।
हम 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को याद करते हैं, लेकिन हम अहीरवाल के राव तुला राम और नसीबपुर के उस भीषण संग्राम को भूल जाते हैं, जहां हरियाणा के किसानों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था। जब 1857 का विद्रोह कुचला गया, तो अंग्रेजों ने इस ‘बागी’ इलाके को सबक सिखाने का फैसला किया। यह सजा सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि ‘सांस्कृतिक’ थी। हरियाणा की ‘पहचान’ को मिटा दिया गया। इसे उत्तर-पश्चिमी प्रांत से हटाकर ‘पंजाब’ के साथ मिला दिया गया। यह 108 वर्षों का एक तरह का ‘सांस्कृतिक वनवास’ था, जहां हरियाणवी बोली, संस्कृति और पहचान एक बड़े प्रांत के नीचे दबकर रह गई।
समग्र विकास और भविष्य की दृष्टि : विकास की गाथा सिर्फ कंक्रीट, मेडल्स तक सीमित नहीं है। हरियाणा की आत्मा रागनी और सांग में बसती है। यह वही हरियाणा है, जो कभी लिंगानुपात के लिए आलोचना झेलता था, आज ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का राष्ट्रीय ध्वजवाहक है। ‘म्हारा गांव जगमग गांव’ से लेकर शिक्षा के केंद्रों तक, हरियाणा ने नए मानक गढ़े हैं। और ‘जय जवान’ का नारा तो इस प्रदेश की रगों में है।
निश्चित रूप से, चुनौतियां अभी बाकी हैं। दिल्ली-एनसीआर में होने के कारण प्रदूषण और गिरता भू-जल स्तर गंभीर चिंताएं हैं। बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है जिसका समाधान ‘ग्लोबल सिटी’ (गुरुग्राम), ‘एविएशन हब’ (हिसार) और ‘लॉजिस्टिक्स हब’ (नारनौल) जैसी ‘नेक्स्ट जेनरेशन’ परियोजनाओं में खोजा जा रहा है।
गुरुग्राम की मेट्रो से लेकर भिवानी के खेतों तक आज का हरियाणा ‘तीन लालों’ (देवी लाल, बंसीलाल, भजनलाल) की राजनीतिक दूरदर्शिता का परिणाम भी दिखता है, जिन्होंने इस नवगठित राज्य को आत्मविश्वास दिया।
लेकिन जहां ‘तीन लालों’ ने राज्य की राजनीतिक और ढांचागत नींव रखी, वहीं हाल के वर्षों में शासन की एक नयी शैली ने जड़ें जमाई हैं। इस नयी शैली का वैचारिक लंगर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ‘अंत्योदय’ दर्शन में निहित है– यानी, पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति का उत्थान।
इस दर्शन को ‘व्यवस्था परिवर्तन’ के नारे के साथ जमीन पर उतारने का श्रेय मनोहर लाल के कार्यकाल को जाता है। उन्होंने ई-गवर्नेंस, सीएम विंडो और विशेष रूप से ‘परिवार पहचान पत्र’ जैसे नवाचारों के माध्यम से पारदर्शिता और योग्यता-आधारित नियुक्तियों पर बल दिया। अब, इसी वैचारिक और प्रशासनिक विरासत को आगे बढ़ाने का दायित्व वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सैनी के कंधों पर है।
1 नवंबर, 1966 : शून्य से एक नयी शुरुआत
1 नवंबर 1966, ‘जन्म’ का नहीं, हरियाणा के ‘पुनर्जन्म’ का दिन है। यह पंडित नेकी राम शर्मा, चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा और अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के उस संघर्ष की जीत थी, जो एक अलग हिंदी भाषी राज्य चाहते थे। लेकिन ‘शाह कमीशन’ की सिफारिशों पर जब यह राज्य बना, तो इसे ‘अधूरी’ विरासत मिली। न कोई बड़ा शहर (चंडीगढ़ भी साझा राजधानी बनी), न प्रमुख उद्योग, न पर्याप्त बिजली और पानी की भारी किल्लत। इन्हीं परिस्थितियों में हरियाणा का 5000 साल पुराना ‘डीएनए’ जागा। इस मिट्टी में ‘श्रम’ और ‘संकल्प’ कूट-कूट कर भरा है। यहां के लोगों ने शून्य से शिखर तक की जो यात्रा शुरू की, वह आज पूरे देश के लिए एक ‘केस स्टडी’ है। इस विकास की नींव तीन स्तंभों पर रखी गई- खेत, फैक्टरी और अखाड़ा। हरियाणा के किसान ने अपनी मेहनत से हरित क्रांति को सफल बनाया। यह राज्य देश का अन्न भंडार बन गया। दूसरा स्तंभ ‘फैक्टरी’ था। स्वर्गीय बंसीलाल जैसे नेताओं ने बुनियादी ढांचे पर काम किया। 1980 के दशक में मारुति उद्योग का गुरुग्राम (तब गुड़गांव) आना एक ‘गेम चेंजर’ साबित हुआ। आज कारों का एक बड़ा हिस्सा हरियाणा में बनता है, और 250 से ज्यादा ‘फॉर्चयून 500’ कंपनियों के दफ्तर यहां हैं। तीसरा स्तंभ ‘अखाड़ा’ था। ओलंपिक हो, कॉमनवेल्थ या एशियन गेम्स, भारत के पदकों में हरियाणा का हिस्सा उसकी आबादी के अनुपात से कहीं ज्यादा है।
