Haridwar Temple Dispute : किसके हवाले होगी हरिद्वार मंदिर की देखरेख? , अब सुप्रीम कोर्ट करेगी फैसला
Haridwar Temple Dispute : सुप्रीम कोर्ट हरिद्वार स्थित मां चंडी देवी मंदिर के सेवायत द्वारा दायर याचिका पर 19 अगस्त को सुनवाई करेगा। याचिका में उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है जिसमें बद्री केदार मंदिर समिति को मंदिर के प्रबंधन की देखरेख के लिए एक रिसीवर नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है। "सेवायत" एक पुजारी होता है जो मंदिर के दैनिक अनुष्ठान और प्रबंधन में सक्रिय रूप से शामिल होता है।
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ ने इस मामले में उत्तराखंड सरकार को 28 जुलाई को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा। शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि बद्री केदार मंदिर समिति द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय याचिका के परिणाम के अधीन होगा। महंत भवानी नंदन गिरि ने शीर्ष अदालत में याचिका अधिवक्ता अश्विनी दुबे के माध्यम से दायर की है। याचिका में कहा गया है कि उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बिना किसी साक्ष्य और शिकायत के मंदिर का नियंत्रण एक समिति को सौंप दिया, जबकि 2012 में उसके द्वारा जिलाधिकारी (डीएम) और हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की सदस्यता वाली एक समिति गठित की गई थी।
याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि रिसीवर नियुक्त करने का निर्देश एक आपराधिक मामले में आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान पारित किया गया। इसमें कहा गया है कि मां चंडी देवी मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी में जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य ने की थी और तब से, ऐसा कहा जाता है कि याचिकाकर्ता के पूर्वज "सेवायत" के रूप में इसका प्रबंधन और देखभाल करते आ रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि न तो एक भी शिकायत है और न ही हाई कोर्ट द्वारा नियुक्त जिलाधिकारी और एसएसपी की समिति ने कभी कुप्रबंधन या गबन का सवाल उठाया है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘हाई कोर्ट ने मनमाना और अवैध निर्देश बिना किसी विशेष राहत के पारित किया है, वह भी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन करते हुए क्योंकि याचिकाकर्ता, जो सेवायत/मुख्य ट्रस्टी है, को नहीं सुना गया।'' याचिकाकर्ता ने कहा कि हाई कोर्ट ने नोटिस जारी नहीं किया और उक्त निर्देश पारित कर दिया। याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट ने "त्रुटिपूर्ण ढंग से" मंदिर का कार्य बद्री केदार मंदिर समिति को सौंप दिया, जबकि यह सराहना नहीं की गई कि जिलाधिकारी (जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) की अध्यक्षता वाली समिति इस कार्य को ईमानदारी और निष्ठा से कर रही थी।
हाई कोर्ट ने यह आदेश रीना बिष्ट नामक महिला द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसने मंदिर के मुख्य पुजारी रोहित गिरि की लिव-इन पार्टनर होने का दावा किया था। रोहित गिरि की पत्नी गीतांजलि ने 21 मई को अपने पति बिष्ट और सात अन्य के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि महिला ने 14 मई को उसके बेटे को गाड़ी से कुचलने का प्रयास किया था। उसी दिन, रोहित गिरि को पंजाब पुलिस ने एक अलग छेड़छाड़ के मामले में गिरफ्तार किया था और वह वर्तमान में न्यायिक हिरासत में है।
हाई कोर्ट ने पाया कि बिष्ट के साथ रोहित गिरि ऐसे में रह रहे थे जब उनकी तलाक की कार्यवाही लंबित थी और बिष्ट ने जनवरी में उनके बच्चे को जन्म दिया था। उसने कहा, ‘‘"मंदिर के ट्रस्टी एक विषाक्त वातावरण बना रहे हैं...और ट्रस्ट में पूरी तरह से कुप्रबंधन व्याप्त है। यह संभावना नकारी नहीं जा सकती कि चढ़ावे (दान) के दुरुपयोग की भी स्थिति हो सकती है।''