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गांधी की शिक्षाएं आज अधिक प्रासंगिक : वोहरा

गोपालकृष्ण गांधी की पुस्तक का विमोचन

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नयी दिल्ली में रविवार को पुस्तक 'मोहनदास करमचंद गांधी... आई एम एन ऑर्डिनरी मैन' का विमोचन करते जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा एवं पुस्तक के संपादक पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी। -मानस रंजन भुई
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सत्य प्रकाश/ ट्रिन्यू

नयी दिल्ली, 3 दिसंबर

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पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा सहित प्रख्यात हस्तियों और विद्वानों ने रविवार को कहा कि महात्मा गांधी की शिक्षाएं उनकी हत्या के 75 साल से अधिक समय बाद वर्तमान में और भी अधिक प्रासंगिक हो गयी हैं। रविवार शाम पूर्व राज्यपाल और महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी की नयी पुस्तक 'मोहनदास करमचंद गांधी : आई एम एन ऑर्डिनरी मैन : इंडियाज स्ट्रगल फॉर फ्रीडम (1914-1948)' का विमाेचन करते हुए वोहरा ने लेखक की सराहना की। वोहरा ने कहा, 'उन्होंने जो काम किया है, वह एक पोते की ओर से एक दादा को दी गयी उल्लेखनीय श्रद्धांजलि है। मेरी टिप्पणी है... मेरा संदेश यह है कि इस किताब को अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।'

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वोहरा ने कहा, यह न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महान योगदान है... गांधीजी जिस दौर से गुजरे, जिससे उन्होंने काम किया, जिससे उन्होंने संघर्ष किया, जिन औपनिवेशिक आकाओं का उन्होंने दिन-प्रतिदिन सामना किया... यह खंड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास है... भारत का इतिहास है... यह भारत का समाजशास्त्रीय इतिहास है और एक तरह से भारत का राजनीतिक इतिहास है।

उन्होंने कहा, 'महात्मा का प्रभाव कम से कम मेरी पीढ़ी पर... 1930 के दशक की शुरुआत की पीढ़ी पर स्पष्ट था। बाद की पीढ़ियों के बारे में मैं नहीं बोल सकता। लेकिन एक बार फिर मुझे लगता है कि चक्र उल्टा हो गया है। जिस तरह से दुनिया भर में चीजें हो रही हैं, हम उसे फिर से महत्व देना शुरू कर देंगे। हम महात्मा की शिक्षाओं को महत्व देना शुरू करेंगे।'

महात्मा गांधी के निजी जीवन और कस्तूरबा गांधी के साथ उनके संबंधों के कई किस्से साझा करते हुए, लेखक ने बताया कि कैसे कस्तूरबा गांधी ने महात्मा के साथ एक सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार किया और कैसे वह उनका सम्मान करते थे। पुणे के आगा खान पैलेस में कस्तूरबा गांधी की 22 फरवरी, 1944 को मृत्यु व उनके जीवन के अंतिम क्षणों के बारे में बात करते हुए, गोपालकृष्ण गांधी ने भावनात्मक क्षण का वर्णन किया। उन्होंने कहा, '22 तारीख की शाम को उन्होंने मुझे बुलाया... उन्हें आराम देने के लिए सहारा दे रहे लोगों की जगह मैंने ले ली... मैंने उन्हें अपने कंधे पर झुकाया और जितना आराम दे सकता था, देने की कोशिश की। सभी उपस्थित थे, उनमें से लगभग 10 लोग सामने खड़े थे... उन्होंने पूर्ण आराम के लिए अपने बाजू हिलाये, फिर पलक झपकते ही हरिलाल, रामदास और देवदास (उनके बेटे) भी पास आ गये... शाम के 7.35 बज रहे थे... शिवरात्रि का दिन था।' उन्होंने कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना को छोड़कर सभी की ओर से शोक संदेश आए। पूर्व आईएएस और कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा, 'आज के भारत में गांधी को एक पुरातनपंथी के रूप में देखा जाता है, जो कि वह नहीं हैं।' उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे उन्हें पढ़ें ताकि पता चले कि वे आज कितने प्रासंगिक हैं। रॉय ने कहा कि गांधी का व्यक्तिगत और निजी जीवन एक समान था।

इतिहासकार रुद्रांग्शु मुखर्जी और राजनीतिक वैज्ञानिक त्रिदीप सुहृद ने बताया कि नोआखाली दंगों जैसी ऐतिहासिक घटनाओं और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत के सामने आयी चुनौतियों का गांधीजी ने किस तरह जवाब दिया।

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