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'वोट चोरी' के आरोपों पर बोले पूर्व CEC कुरैशी, राहुल गांधी पर 'चिल्लाने' के बजाय चुनाव आयोग को करानी चाहिए थी जांच

Rahul vs EC: कहा- राहुल गांधी आखिरकार विपक्ष के नेता हैं, उन पर वैसे चिल्लाना जैसा आयोग ने किया, सही नहीं है
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी। पीटीआई फाइल फोटो
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Rahul vs EC: ‘वोट चोरी’ के आरोपों को लेकर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया पर कड़ा रुख अपनाते हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने रविवार को कहा कि आयोग को विपक्ष के नेता राहुल गांधी के आरोपों की जांच का आदेश देना चाहिए था, न कि उन पर इस तरह की भाषा में ‘चिल्लाना’ चाहिए था जो “आपत्तिजनक और आपराधिक” थी।

पीटीआई से साक्षात्कार में कुरैशी ने कहा कि गांधी द्वारा लगाए गए कई आरोप जैसे कि उन्हें “हाइड्रोजन बम” कहना राजनीतिक बयानबाजी थे, लेकिन जिन शिकायतों को वे उठा रहे हैं उनकी गहन जांच होनी चाहिए।

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पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त कुरैशी ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण(Special Intensive Revision) के तरीके को लेकर आयोग की आलोचना की और कहा कि यह न केवल "भानुमति का पिटारा खोलना" है, बल्कि निर्वाचन आयोग ने "मधुमक्खी के छत्ते" में हाथ डाल दिया है, जिससे उसे नुकसान होगा।

उन्होंने कहा, “जब मैं चुनाव आयोग की आलोचना सुनता हूं, तो मुझे चिंता और दुख होता है, न केवल भारत का नागरिक होने के नाते बल्कि इसलिए भी क्योंकि मैं भी उस संस्था में अपनी ईंट रख चुका हूं। जब मैं देखता हूं कि यह संस्था हमले में है या किसी भी तरह से कमजोर हो रही है, तो मुझे चिंता होती है। आयोग को आत्ममंथन करना चाहिए और सभी दबावों का डटकर सामना करना चाहिए।”

2010 से 2012 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे कुरैशी ने कहा, “उन्हें जनता का भरोसा जीतना होगा—आपको विपक्षी दलों का भरोसा चाहिए। सत्ता पक्ष को उतनी तवज्जो की जरूरत नहीं होती जितनी विपक्ष को होती है। इसलिए मैंने हमेशा अपने स्टाफ से कहा कि अगर विपक्षी दल अपॉइंटमेंट मांगें तो तुरंत दें, उनकी बातें सुनें, उनसे संवाद करें और यदि कोई छोटा काम है जो किसी और के नुकसान पर नहीं है तो कर दें।”

उन्होंने कहा कि आज स्थिति यह है कि विपक्ष को बार-बार सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है और 23 दलों तक को कहना पड़ा है कि उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही। कुरैशी का मानना है कि गांधी के आरोपों पर आयोग को जांच का आदेश देना चाहिए था, न कि उनसे हलफनामा मांगना चाहिए था।

उन्होंने कहा, “राहुल गांधी आखिरकार विपक्ष के नेता हैं, उन पर वैसे चिल्लाना जैसा आयोग ने किया, सही नहीं है। वे सड़क पर खड़े कोई आम आदमी नहीं हैं। वे करोड़ों लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनसे कहना कि ‘हलफनामा दो, वरना ऐसा करेंगे-वैसा करेंगे’, आयोग की भाषा और अंदाज दोनों आपत्तिजनक और अस्वीकार्य हैं।”

कुरैशी ने कहा, “मान लीजिए विपक्ष भी पलटकर कह दे कि आपने नई मतदाता सूची बनाई है, अब आप हलफनामा दें कि इसमें कोई गलती नहीं है, और अगर गलती हुई तो आप पर आपराधिक मुकदमा चलेगा। क्या आप इस स्थिति की कल्पना कर सकते हैं?”

उन्होंने स्पष्ट किया कि न केवल विपक्ष के नेता बल्कि कोई भी नागरिक शिकायत करता है, तो सामान्य प्रक्रिया यही रही है कि तुरंत जांच का आदेश दिया जाए।

उन्होंने कहा, “हमें सिर्फ निष्पक्ष नहीं होना है बल्कि निष्पक्ष दिखाई भी देना है। जांच से तथ्य सामने आते हैं। आयोग ने जैसा जवाब दिया, उसके बजाय जांच कराना सही कदम होता, लेकिन उन्होंने मौका गंवा दिया।”

यह बयान उस समय आया है जब हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त ग्यानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि राहुल गांधी अपने आरोपों पर सात दिन के भीतर शपथपत्र दें, अन्यथा उनकी ‘वोट चोरी’ की बातें आधारहीन और अमान्य मानी जाएंगी।

राहुल गांधी ने ‘वोट चोरी’ के आरोप लगाते हुए कहा था कि 2024 लोकसभा चुनावों में कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में पांच तरह की गड़बड़ियों से एक लाख से अधिक वोट “चुराए गए”। उन्होंने अन्य राज्यों में भी इसी तरह की अनियमितताओं का आरोप लगाया और बिहार में मतदाता सूची संशोधन के खिलाफ ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकाली।

कुरैशी ने कहा कि गांधी द्वारा ‘हाइड्रोजन बम’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल राजनीतिक बयानबाजी है, लेकिन अगर गंभीर मुद्दे और शिकायतें उठाई जा रही हैं तो उनकी गहराई से जांच होनी चाहिए ताकि न केवल विपक्षी नेता बल्कि पूरा देश संतुष्ट हो सके। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि चुनावी प्रक्रिया पर जनता का भरोसा कमजोर हुआ है।

मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए वोटर फोटो पहचान पत्र (EPIC) को मान्य दस्तावेजों की सूची से बाहर करने पर सवाल उठाते हुए कुरैशी ने कहा कि यह कार्ड खुद चुनाव आयोग जारी करता है और इसे अस्वीकार करने के गम्भीर नतीजे होंगे।

उन्होंने कहा, “आयोग ने 30 साल में 98-99 प्रतिशत सटीकता हासिल की है। हर साल 1 प्रतिशत सुधार घर-घर जाकर किया जाता है। अब अगर आप मौजूदा सूची को कूड़ेदान में डालकर तीन महीने में नया करना चाहते हैं तो यह मुसीबत को न्योता देने जैसा है। आयोग ने खुद को भंवरे के छत्ते में डाल लिया है और इससे नुकसान होगा। सुप्रीम कोर्ट ने आधार को मान्यता देने को कहा है, लेकिन EPIC पर ध्यान नहीं दिया गया जबकि यह आयोग की अपनी देन है।”

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