इतिहास में पहली बार दिल्लीवासी बनेंगे कृत्रिम बारिश के गवाह!
दिल्ली में ‘क्लाउड सीडिंग’ के माध्यम से पहली कृत्रिम वर्षा की जायेगी और वह संभवतः 29 अक्तूबर को होगी। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने शुक्रवार को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी के लिए ‘क्लाउड सीडिंग’ (कृत्रिम वर्षा) बहुत जरूरी है, क्योंकि यह सर्दी के मौसम में बढ़ते प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। बृहस्पतिवार को किए गए इस सफल प्रायोगिक परीक्षण के बारे में गुप्ता ने कहा, ‘क्लाउड सीडिंग’ ऐसी चीज है जो पहले कभी नहीं हुई। हम शहर भर में यह परीक्षण करना चाहते हैं, क्योंकि यह वायु प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकता है।’ उन्होंने कहा, ‘हम मानते हैं कि यह तकनीक सफल होगी। इसका उपयोग भविष्य में पर्यावरणीय चुनौतियों, खासकर सर्दियों के महीनों में सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए किया जा सकता है।’ गुप्ता ने बृहस्पतिवार रात ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि इस परियोजना का सफल परीक्षण बुराड़ी क्षेत्र में किया गया। विशेषज्ञों ने बृहस्पतिवार को बुराड़ी क्षेत्र में एक परीक्षण सफलतापूर्वक किया।
क्या है क्लाउड सीडिंग : क्लाउड सीडिंग मौसम को बदलने की एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसका मुख्य उद्देश्य कृत्रिम बारिश या बर्फबारी कराना है। यह प्रक्रिया बादलों को ‘बीज’ देने जैसी होती है। इसमें हवाई जहाज, रॉकेट या ज़मीन पर मौजूद मशीनों का उपयोग करके बादलों में कुछ खास रसायनों के छोटे कणों का छिड़काव किया जाता है। क्लाउड सीडिंग के लिए पहले से ही नमी वाले बादलों (जैसे, क्यूम्युलस या परतदार बादल) का होना ज़रूरी है। बिना बादल के यह काम नहीं करता। बादलों में सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड), या नमक जैसे रसायनों के कण डाले जाते हैं। ये कण पानी की बूंदों या बर्फ के क्रिस्टल के लिए ‘नाभिक’ का काम करते हैं। बादल में मौजूद नमी इन कणों के चारों ओर जमा होकर बड़ी बूंदों में संघनित होने लगती है।जब ये बूंदें भारी हो जाती हैं तो वे गुरुत्वाकर्षण के कारण बारिश के रूप में नीचे गिरने लगती हैं।
