Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

Farewell Legend धर्मेंद्र का आखिरी सफ़र..दिलों में जिंदा रहेगा ‘जट यमला’

पंजाबी दिल और सादा स्वभाव

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

हिंदी सिनेमा के कालजयी सितारे धर्मेंद्र अब हमेशा के लिए अलविदा कह गए और उनके साथ खत्म हुई एक ऐसी विरासत जो आने वाली पीढियों को प्रेरित करती रहेगी। ‘हैंडसम हीमैन’, ‘जट यमला’, ‘बॉक्स ऑफिस किंग’ और संवेदनशील अभिनेता जैसे अनेक विशेषणों से नवाजे गए धर्मेंद्र ने तीन सौ से अधिक फिल्मों में काम किया और भारतीय सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी।

धर्मेंद्र को सिर्फ बड़े पर्दे से ही नहीं बल्कि उनके जमीनी व्यवहार से भी लोग याद करते रहेंगे। एक किस्सा चंडीगढ़ का हमेशा दोहराया जाता है जब एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पीआर टीम फोटोग्राफरों को भीतर नहीं आने दे रही थी। तभी धर्मेंद्र ने जोर से कहा ‘उन्हें अंदर आने दो, उनका हक बनता है’। यही उनका असली पंजाबी दिल था। सफलता के शिखर पर होते हुए भी वह अपनी जड़ें नहीं भूले। सत्तर और अस्सी के दशक में भी उनका घर गांववालों के लिए हर समय खुला रहता था और वे खुद खाना खिलाकर विदा करते थे।

Advertisement

पंजाब की मिट्टी से उठकर सुपरस्टार तक

आठ दिसंबर 1935 को लुधियाना जिले के नसराली गांव में जन्मे धर्मेंद्र केवल कृष्ण देओल शुरू से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। सीरियस रोल्स में उनकी संयमित अदाकारी ‘अनुपमा’, ‘सतयकाम’ और ‘फूल और पत्थर’ में खूब चमकी। कॉमिक टाइमिंग का जादू ‘चुपके चुपके’ जैसे क्लासिक्स में नजर आया और ‘यमला पगला दीवाना’ का जट यमला अंदाज उन्हें दर्शकों के दिलों में अलग पहचान देता रहा।

Advertisement

हेमामालिनी संग सुपरहिट जोड़ी

धर्मेंद्र और हेमामालिनी की जोड़ी ने कई फिल्मों में सफलता के झंडे गाड़े। लोकप्रियता आसमान छूती रही लेकिन अवॉर्ड्स अक्सर उनसे दूर ही रहे। पद्म भूषण से सम्मानित इस कलाकार के बेटे बॉबी देओल कई बार कहते रहे कि पिता को जितनी मान्यता मिलनी चाहिए थी, उतनी नहीं मिली। हालांकि बेटे सनी देओल की ‘गदर 2’ की सफलता और बॉबी का नया उभार धर्मेंद्र को हमेशा खुशी देता रहा।

परिवार, स्पष्टवादिता और कैमरे से प्यार

बेटी ईशा देओल के फिल्मों में आने पर वे अक्सर पुराने जमाने वाला सुर साध लेते थे लेकिन उनकी साफगोई पर किसी को शक नहीं था। वह खुद कहते थे कि कैमरे से उन्हें अनोखा प्रेम है और कैमरा भी उन्हें उसी शिद्दत से चाहता है। दिलीप कुमार की फिल्म ‘शहीद’ देखकर उन्हें पहली बार महसूस हुआ कि सिनेमा की दुनिया में उनका भी स्थान है और बाद में दर्शकों ने इस अहसास को सच साबित किया।

सिनेमाई सफर की यादें

1960 में ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ से शुरुआत भले साधारण रही हो, पर जल्द ही ‘अनपढ़’, ‘फूल और पत्थर’, ‘हकीकत’, ‘आइ मिलन की बेला’ जैसी फिल्मों ने उन्हें हिंदी सिनेमा में मजबूत जगह दिला दी। ‘शोले’ में वीरू का किरदार आज भी दोस्ती का प्रतीक है और ‘चुपके चुपके’ में प्यारे मोहन दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान लाते रहेंगे।

एक्शन हीरो की छवि और गहरी संवेदना

‘कुत्ते कमीने मैं तेरा खून पी जाऊंगा’ और ‘बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना’ जैसे मशहूर डायलॉग उनकी लोकप्रियता का हिस्सा रहे लेकिन कई बार यही छवि उनकी संवेदनशील अदाकारी पर हावी हो गई। उर्दू शायरी से प्रेम ने उनकी कोमलता को और निखारा।

बावजूद इसके, प्रेमी का रोल हो या गंभीर किरदार, हर दौर में धर्मेंद्र अपने अलग रंग में नजर आए। ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ में नफीसा अली के साथ उनका शांत प्रेम और ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ में शबाना आजमी संग रोमांटिक अंदाज ने यह साबित किया कि उम्र प्यार या अभिनय पर कोई सीमा नहीं लगाती।

दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे

धर्मेंद्र ने जीवन भर विनम्रता, सादगी और ईमानदारी की राह पकड़ी। कैमरे के सामने उनकी सहजता और दर्शकों से जुड़े रहने का स्वभाव ही उनकी असली पूंजी रहा। ‘पल पल दिल के पास’… वह वाकई दर्शकों के दिलों में जगह बनाकर अमर हो गए हैं।

Advertisement
×