Europe Reality Check यूरोप में सब सुनहरा नहीं होता”—भारतीय युवा की पोस्ट से प्रवासी जीवन पर छिड़ी बहस
ट्रिब्यून वेब डेस्क
चंडीगढ़, 15 जुलाई
स्वीडन में रहने वाले भारतीय सॉफ्टवेयर डेवलपर देव विजय वर्गीय द्वारा यूरोप में प्रवासी जीवन की चुनौतियों पर साझा किया गया एक वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया है। इंस्टाग्राम पर पोस्ट किए गए इस वीडियो को अब तक 3.7 मिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है और इसने सोशल मीडिया पर बहस की लहर छेड़ दी है।
वर्गीय ने वीडियो में यूरोप में रहने के कम आकर्षक पक्षों को उजागर करते हुए कहा कि प्रवासियों को नौकरी छूटने पर एक हफ्ते के भीतर देश छोड़ना पड़ सकता है, क्योंकि उनकी रेजिडेंस परमिट नौकरी से जुड़ी होती है। इसके अलावा, उन्होंने महंगा किराया, दैनिक जरूरतों की बढ़ती लागत, मौसम की सख़्ती और परिवार से दूरी के कारण पैदा होने वाले भावनात्मक अकेलेपन को भी गंभीर मुद्दा बताया।
उन्होंने चेताया कि अगर आप परिवार और दोस्तों के पास रहना पसंद करते हैं, तो यूरोप शिफ्ट होने से पहले दो बार सोचें। हालांकि, इस वीडियो पर प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रही हैं। कुछ ने वर्गीय की बातों को सराहा और कहा कि वह असल ज़मीनी सच्चाई को सामने ला रहे हैं, जबकि कई यूज़र्स ने उनकी आलोचना की। एक ने लिखा, 'तो वापस आ जाओ... रो कौन रहा है?' वहीं कुछ ने यह भी बताया कि स्वीडन समेत कई यूरोपीय देशों में नौकरी छूटने के बाद 30 से 90 दिन का ग्रेस पीरियड दिया जाता है, इसलिए “एक हफ्ते” वाला दावा भ्रामक है।
कई लोगों ने यह भी तर्क दिया कि हर देश के अपने फायदे और नुकसान होते हैं, और किसी भी अंतरराष्ट्रीय अनुभव को केवल मुश्किलों के आधार पर नहीं आंकना चाहिए। एक यूज़र ने कहा कि शिकायत करना आसान है, लेकिन वहां रहने के लिए किसी ने मजबूर नहीं किया है। यह वीडियो न केवल वायरल हो गया है, बल्कि इसने प्रवासन, अपेक्षाओं और विदेश में जीवन की वास्तविकताओं पर एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है।