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Emergency @50 : ...जब नरेन्द्र मोदी ने ‘स्वामीजी' के वेश में की यात्राएं, जेल में बंद कार्यकर्ताओं से करीब एक घंटे तक की बात

आपातकाल के दौरान मोदी की यात्राओं का उल्लेख करने वाली एक पुस्तक में यह बात कही गई है
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नई दिल्ली, 25 जून (भाषा)

Emergency @50 : आपातकाल के दौरान प्रतिबंधित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य के रूप में पहचाने जाने से बचने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विभिन्न वेश धारण कर यात्राएं कीं। एक बार ऐसे ही जब उन्हें संघ के कार्यकर्ताओं से मिलना था जो वह ‘स्वामीजी' का वेश धारण कर जेल पहुंच गए, जहां उन्होंने जेल में बंद कार्यकर्ताओं से करीब एक घंटे तक बात की। आपातकाल के दौरान मोदी की यात्राओं का उल्लेख करने वाली एक पुस्तक में यह बात कही गई है।

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तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए 21 महीने लंबे आपातकाल के दौरान एक युवा आरएसएस प्रचारक के रूप में मोदी ने विभिन्न वेश धारण कर यात्राएं कीं, हिंदुत्व संगठन के साथी कार्यकर्ताओं सहित अन्य लोगों के साथ बैठकें कीं, जेल में बंद लोगों के परिवारों के लिए सहायता का प्रयास किया। आपातकाल विरोधी साहित्य का नियमित प्रकाशन एवं वितरण सुनिश्चित किया। ‘ब्लूक्राफ्ट' ने उस अवधि के दौरान भूमिगत अभियान में मोदी की भूमिका का विवरण देने के लिए ‘‘द इमरजेंसी डायरीज - इयर्स दैट फोर्ज्ड ए लीडर'' प्रकाशित की है। यह पुस्तक उस समय मोदी से जुड़े कई लोगों से बातचीत पर आधारित है।

पुस्तक के कुछ अंशों में गुजरात के नडियाद के आरएसएस स्वयंसेवक हसमुख पटेल के हवाले से कहा गया है कि मोदी उस समय भी नवोन्मेषी कार्यों के प्रति उत्सुक थे। उन्होंने बताया कि मोदी ने आपातकाल विरोधी साहित्य को नाइयों की दुकानों में रखने का सुझाव दिया था, जहां विभिन्न वर्गों के लोग एकत्र होते थे। मोदी ने न केवल आपातकाल विरोधी साहित्य का नियमित प्रकाशन सुनिश्चित किया, बल्कि पूरे गुजरात में इसे वितरित करने की जोखिम भरी जिम्मेदारी भी निभाई। उस अंधकारमय समय में, साहित्य और प्रकाशनों ने नागरिकों के दिलों में लोकतांत्रिक लौ को जलाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मोदी अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए अक्सर सिख का भेष धारण करते थे। उनका सरदारजी वाला भेष ऐसा था कि उनके करीबी परिचित भी उन्हें पहचान नहीं पाते थे। जूनागढ़ के पत्रकार विष्णु पंड्या बताते हैं कि राष्ट्रीय स्तर की ‘संघर्ष समिति' के सदस्य के रूप में मोदी ने इस ‘‘काले कानून'' के खिलाफ व्यापक राष्ट्रव्यापी आंदोलन में योगदान दिया और भावनगर जेल में बंद कार्यकर्ताओं से मिलने का फैसला किया जिनमें स्वयं पंड्या भी शामिल थे।

पंड्या बताते हैं कि जयप्रकाश नारायण से जुड़े संगठन ‘सर्वोदय' के सदस्य अक्सर बंदियों के लिए किताबें लाते थे। मोदी के लिए जेल आकर हमसे मिलने का यह एक अच्छा अवसर था। सितंबर 1976 में व्यापक तैयारियों के बाद मोदी भावनगर पहुंचे। उन्होंने ‘स्वामीजी' के वेश में जेल परिसर में प्रवेश किया और अपने ‘अनुयायियों' से मिलने की अनुमति सफलतापूर्वक प्राप्त कर ली। वह जेल के केंद्रीय कार्यालय में हमसे मिले और लगभग एक घंटे तक हमारे साथ रहे।

हमने जेल प्रशासन और कैदियों के परिवारों की स्थिति के बारे में बात की, जो एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय था क्योंकि कमाने वाले सदस्य जेल में थे और पूरा परिवार बाहर था। चर्चा का तीसरा विषय यह था कि आपातकाल विरोधी प्रकाशनों को और कैसे बढ़ावा दिया जाए। इसके बाद वह चले गए। किसी को भी संदेह नहीं हुआ कि हमसे मिलने आए व्यक्ति मोदी थे।

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