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वंशवाद भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा : थरूर

बोले- शासन की गुणवत्ता पर पड़ता है असर

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने कहा है कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक 'गंभीर खतरा' है और अब समय आ गया है कि भारत 'वंशवाद की जगह योग्यता' को अपनाए। उन्होंने कहा कि जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या जमीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंशवाद से होता है, तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठन ‘प्रोजेक्ट सिंडिकेट' के लिए एक लेख में तिरुवनंतपुरम के सांसद ने बताया कि नेहरू-गांधी परिवार कांग्रेस से जुड़ा हुआ है, लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में वंशवाद का बोलबाला है। थरूर का यह बयान भारत-पाकिस्तान संघर्ष और पहलगाम हमले के बाद राजनयिक प्रयासों पर उनकी टिप्पणियों को लेकर उठे विवाद के कुछ सप्ताह बाद आया है। उस समय उनकी टिप्पणियां कांग्रेस के रुख से अलग थीं और कई पार्टी नेताओं ने उनकी मंशा पर सवाल उठाते हुए उन पर निशाना साधा था। ‘इंडियन पॉलिटिक्स आर ए फेमिली बिजनेस' शीर्षक वाले लेख में थरूर ने कहा कि दशकों से एक परिवार भारतीय राजनीति पर हावी रहा है और नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा हुआ है। उनका कहना था, 'लेकिन यह विचार पुख्ता हुआ है कि राजनीतिक नेतृत्व एक जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है। यह विचार भारतीय राजनीति में हर पार्टी, हर क्षेत्र और हर स्तर पर व्याप्त है।'

थरूर ने कहा कि बीजू पटनायक के निधन के बाद उनके बेटे नवीन ने अपने पिता की खाली लोकसभा सीट जीती। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने यह पद अपने बेटे उद्धव को सौंप दिया और अब उद्धव के बेटे आदित्य भी प्रतीक्षारत हैं। थरूर ने राजनीतिक वंशवाद के और उदाहरण देते हुए कहा, 'यही बात समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव पर भी लागू होती है, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और जिनके बेटे अखिलेश यादव बाद में उसी पद पर रहे। अखिलेश अब सांसद और पार्टी के अध्यक्ष हैं। बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान के बाद उनके बेटे चिराग पासवान ने पार्टी की कमान संभाली।'

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उन्होंने जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, पंजाब और तमिलनाडु में भी वंशवादी राजनीति की मिसालें दीं। थरूर ने यह भी तर्क दिया कि यह (वंशवादी राजनीति) केवल कुछ प्रमुख परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ग्राम सभाओं से लेकर संसद तक, भारतीय शासन के ताने-बाने में गहराई से समाई हुई है। उन्होंने पाकिस्तान में भुट्टो और शरीफ परिवार, बांग्लादेश में शेख और ज़िया परिवार तथा श्रीलंका में भंडारनायके और राजपक्षे परिवार का उदाहरण देते हुए कहा, ‘सच कहूं तो, इस तरह की वंशवादी राजनीति पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है।'

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