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Diwali Cracker Protest : ना ये बहस नई है, ना मुद्दा.... 1961 में भी गूंजा था पटाखों का विरोध

पटाखों पर प्रतिबंध कोई नयी बहस नहीं, 1961 में भी रखा गया था ऐसा ही प्रस्ताव
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Diwali Cracker Protest : दिल्ली में पटाखों पर प्रतिबंध कोई नया मुद्दा नहीं है। दिल्ली अभिलेखागार विभाग द्वारा संरक्षित आधिकारिक अभिलेखों के अनुसार, 1961 में भी पटाखों से होने वाले प्रदूषण की चिंताओं के चलते प्रतिबंध का प्रस्ताव रखा गया था, हालांकि भारत सरकार ने इसे मंजूरी नहीं दी थी। जनवरी 1961 का प्रस्ताव डिप्टी गंज कमेटी (दिल्ली के सदर बाजार स्थित औद्योगिक बाजार संघों में से एक) से आया था, जिसने दिल्ली के मुख्य आयुक्त को पत्र लिखकर त्योहारों और अन्य समारोहों के दौरान बड़े पैमाने पर आतिशबाजी के उपयोग से होने वाले ‘‘ध्वनि प्रदूषण'' के बारे में शिकायत की थी।

पीटीआई द्वारा प्राप्त रिकॉर्ड के अनुसार, बाद में यह पत्र मुख्य आयुक्त के कार्यालय से निर्माण, आवास एवं आपूर्ति मंत्रालय को विचारार्थ भेज दिया गया। मुख्य आयुक्त भारत सरकार के अधीन कार्यरत राष्ट्रीय राजधानी के कार्यकारी प्रमुख थे। छह दशक से भी अधिक समय बाद, पटाखों पर प्रतिबंध को लेकर बहस जारी है। उच्चतम न्यायालय ने दिवाली से कुछ दिन पहले शुक्रवार को कहा कि दिल्ली-एनसीआर में पटाखे फोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना ‘‘न तो व्यावहारिक है और न ही आदर्श स्थिति है'', क्योंकि ऐसे प्रतिबंधों का अक्सर उल्लंघन होता है और सभी पक्षों के हितों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।

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प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ‘‘हरित'' पटाखों के निर्माण और बिक्री की अनुमति दिये जाने के अनुरोध संबंधी याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए ये टिप्पणियां कीं। इन टिप्पणियों से प्रतिबंध में ढील का संकेत मिलता है। वर्ष 1961 में, दिल्ली की आबादी लगभग 26 लाख थी - जो आज शहर की दो करोड़ से अधिक आबादी का एक छोटा सा हिस्सा है। फिर भी, पटाखों से होने वाला ध्वनि प्रदूषण तब भी लोगों की चिंता का विषय था। डिप्टी गंज कमेटी ने अपने पत्र में कहा कि कुछ उच्च-डेसिबल पटाखों के शोर से निवासियों को परेशानी हो रही है, विशेष रूप से हृदय रोग से पीड़ित लोगों को।

कमेटी ने लिखा, "आतिशबाजी के दौरान ऐसा लगता है मानो बाहर पूरी तरह से युद्ध चल रहा हो।" उसने लिखा कि अधिकारी "इस स्थिति से अप्रभावित" लगते हैं। कमेटी ने इस समस्या पर नियंत्रण के लिए कई उपाय भी सुझाए, जिनमें तेज आवाज वाले पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध, रात 10 बजे के बाद आतिशबाजी पर रोक, पटाखों के निर्माण और बिक्री के लिए सख्त लाइसेंस और उल्लंघन पर भारी जुर्माना शामिल है। ये सिफारिशें दिल्ली अभिलेखागार विभाग द्वारा रखे जाने वाले अभिलेखों का भी हिस्सा थीं।

इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए, भारत सरकार के निर्माण, आवास एवं आपूर्ति मंत्रालय के सचिव ने दिल्ली के मुख्य आयुक्त को पत्र लिखकर कहा कि ‘‘पूर्ण प्रतिबंध आवश्यक नहीं समझा गया।'' पत्र में कहा गया कि सरकार ने कहा कि पटाखों का निर्माण पहले से ही भारतीय विस्फोटक अधिनियम और नियमों के तहत विनियमित है और 1958 में पटाखों के आकार को "उनके फोड़ने से उत्पन्न होने वाले शोर को कम करने के उद्देश्य से" कम कर दिया गया था।

सरकार ने यह भी कहा कि इस समस्या का समाधान "गहन पुलिस निगरानी" और स्थानीय नियमों के तहत रात के कुछ निश्चित समय के बाद अस्पतालों और आवासीय क्षेत्रों के पास पटाखों पर प्रतिबंध लगाकर किया जा सकता है। इसमें यह भी कहा गया कि लाइसेंस प्राप्त कारखानों का निरीक्षण करने और पटाखों के अनियमित निर्माण की जांच के लिए तकनीकी कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है।

उस समय, दिल्ली में कोई मुख्यमंत्री नहीं था, क्योंकि शहर के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश (1952-1955) के कार्यकाल के बाद 1956 में दिल्ली विधानसभा भंग कर दी गई थी। वर्ष 1966 में दिल्ली महानगर परिषद की स्थापना होने तक मुख्य आयुक्त भारत के राष्ट्रपति के सीधे नियंत्रण में कार्य करते थे। सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ते प्रदूषण स्तर के कारण पहली बार 2014-15 में दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था।

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