Divine Parliament: माता हडिंबा के आह्वान पर कल कुल्लू में देवताओं की संसद, 350 से अधिक देवता रहेंगे मौजूद
Divine Parliament: देवभूमि हिमाचल की कुल्लू घाटी शुक्रवार को एक अद्भुत और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन की साक्षी बनेगी। नगर (कुल्लू) स्थित जगती पट्ट मंदिर में 31 अक्टूबर को “बड़ी जगती” यानी देव संसद का आयोजन होने जा रहा है, जिसमें...
Divine Parliament: देवभूमि हिमाचल की कुल्लू घाटी शुक्रवार को एक अद्भुत और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन की साक्षी बनेगी। नगर (कुल्लू) स्थित जगती पट्ट मंदिर में 31 अक्टूबर को “बड़ी जगती” यानी देव संसद का आयोजन होने जा रहा है, जिसमें कुल्लू, मंडी के सैराज क्षेत्र और लाहौल से 350 से अधिक देवता और उनके गुर (ओरेकल) एकत्रित होंगे। यह अद्वितीय सभा प्रकृति के प्रकोप और मानवता के पर्यावरण के प्रति कर्तव्यों पर मंथन करेगी।
इस दिव्य संसद का आह्वान माता हडिंबा देवी ने किया है, जिन्हें राज परिवार की दादी देवता माना जाता है। हाल ही में सम्पन्न अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के दौरान देवी के गुर के माध्यम से आया यह संदेश मानवता के लिए चेतावनी लेकर आया “प्रकृति के बढ़ते आक्रोश और मानव उपेक्षा” से बड़ा संकट पैदा हो सकता है, यदि समय रहते सुधार नहीं किए गए।
हिमाचल की देव परंपरा में केवल कुछ ही देवताओं को जगती बुलाने का अधिकार है, जिनमें माता त्रिपुरा सुंदरी, देवता जमलू, कोटकांडी के पंजवीर और माता हडिंबा शामिल हैं। देवी हडिंबा के निर्देश पर राज परिवार और देव समाज इस आयोजन की तैयारियों में जुटे हैं।
सुबह 9 बजे से प्रारंभ होगी जगती
राज परिवार के सदस्य और भगवान रघुनाथ जी के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने बताया कि सभी व्यवस्थाएं पूरी कर ली गई हैं। उन्होंने कहा, “थराह कार्डू का धड़च (ढोल) सुल्तानपुर से नगर तक शोभायात्रा में लाया जाएगा और मंदिर परिसर में माता हडिंबा व माता त्रिपुरा सुंदरी की उपस्थिति में स्थापित किया जाएगा।” “सुबह 9 बजे योगिनियों की आराधना के बाद जगती का शुभारंभ होगा। सभी गुर 30 अक्टूबर की रात से उपवास रखेंगे।”
जगती के दौरान ढोल-नगाड़ों और घंटियों की पवित्र ध्वनियों के बीच गुर (ओरेकल) देव संदेशों का संचार करेंगे। यह आयोजन न केवल एक आध्यात्मिक संवाद होगा, बल्कि मानवता के पर्यावरणीय उत्तरदायित्व की पुनः याद दिलाएगा।
जगती पट्ट की पौराणिक मान्यता
मंदिर के केंद्र में स्थित विशाल पत्थर की शिला जगती पट्ट को अद्भुत शक्तियों का धनी माना जाता है। कहा जाता है कि इसे मनाली के बहांग पर्वत से देव मधुमक्खियों द्वारा नगर लाया गया था। प्राचीन काल में यही स्थान देव न्यायालय के रूप में कार्य करता था, जहां प्राकृतिक आपदाओं या सामाजिक संकटों पर देव परामर्श लिया जाता था।
पांचवीं बार हो रहा दुर्लभ आयोजन
इतिहास में जगती का आयोजन केवल विशेष परिस्थितियों में हुआ है — 1971 में महामारी के दौरान, 2007 में स्की विलेज प्रोजेक्ट पर विवाद के समय, 2014 में पशु बलि प्रतिबंध के बाद और 2019 में कोविड के उपरांत शुद्धिकरण हेतु। अब 2025 की यह जगती फिर एक अहम मोड़ पर आ रही है, जब प्रकृति और मानव के बीच संतुलन बहाल करने की आवश्यकता सबसे गहरी है।

