नयी दिल्ली, 10 दिसंबर (एजेंसी) टाइप-1 मधुमेह से पीड़ित बच्चों को दिव्यांग श्रेणी में रखे जाने की मांग करते हुए राज्यसभा में एक मनोनीत सदस्य ने शुक्रवार को कहा कि इस रोग को दुर्लभ बीमारी के लिए राष्ट्रीय नीति में शामिल भी किया जाना चाहिए। उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए मनोनीत सदस्य सुरेश गोपी ने कहा कि टाइप-1 मधुमेह की स्थिति में, शर्करा का संतुलित स्तर बनाए रखने के लिए अग्नाशय में पर्याप्त मात्रा में इन्सुलिन हार्मोन का उत्पादन नहीं हो पाता। उन्होंने कहा कि कम इन्सुलिन उत्पादन होने पर हाइपो ग्लाइसेमिया और अधिक इन्सुलिन उत्पादन होने पर हाइपर ग्लाइसेमिया की समस्या होती है और दोनों ही घातक हैं। उन्होंने कहा कि अकेले केरल में टाइप-1 मधुमेह से प्रभावित बच्चों की संख्या 3,000 से अधिक है और पूरे देश में करीब 50,000 बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चों को ग्लूकोमीटर तथा अन्य आवश्यक उपकरणों की जरूरत होती है जो महंगे आते हैं और इलाज भी महंगा होता है। उन्होंने कहा कि ऐसे कई बच्चों के माता-पिता के लिए इस बीमारी के इलाज का खर्च उठा पाना संभव नहीं होता। उन्होंने कहा ‘इन्सुलिन का स्तर शरीर में बनाए रखने के लिए हर दिन कई बार बच्चे की जांच की जाती है जिसके लिए ग्लूकोमीटर की जरूरत पड़ती है।’ गोपी ने कहा कि कई देशों में टाइप-1 मधुमेह प्रभावित बच्चों को दिव्यांग श्रेणी में रखा गया है जिसके तहत उन्हें आवश्यक सुविधाएं दी जाती हैं। उन्होंने सरकार से मांग की कि भारत में भी टाइप-1 मधुमेह से प्रभावित बच्चों को दिव्यांग श्रेणी में रखा जाए ताकि उन्हें पढ़ाई और रोजगार में आवश्यक छूट मिल सके। साथ ही उन्होंने कहा कि इस रोग को दुर्लभ बीमारी के लिए राष्ट्रीय नीति में शामिल किया जाना चाहिए।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।