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Delhi 2020 Riots Case : सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख; आरोपियों के वकीलों को 15 और सरकार को मिलेंगे 30 मिनट

न्यायालय ने दिल्ली दंगा मामले में दलीलें 15 मिनट तक सीमित रखने को कहा

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Delhi 2020 Riots Case : सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के आरोपियों की ओर से पेश वकीलों को अपनी मौखिक दलीलें 15 मिनट तक सीमित रखने का बुधवार को निर्देश दिया। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने कहा कि आरोपियों के वकीलों की दलीलों पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू को स्पष्टीकरण के लिए 30 मिनट का समय मिलेगा।

पीठ ने मामले की सुनवाई 9 दिसंबर के लिए निर्धारित करते हुए कहा कि दोनों पक्षों की तरफ से दलीलें प्रस्तुत की जा चुकी हैं। हमारा मानना ​​है कि एक समय-सारिणी तय किए जाने की आवश्यकता है। मौखिक दलीलें 15 मिनट से अधिक नहीं होनी चाहिए और एएसजी द्वारा स्पष्टीकरण 30 मिनट से अधिक नहीं होना चाहिए। अदालत ने मामले में आरोपियों की ओर से पेश हुए वकीलों को अपने स्थायी पते प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया। मामले में जमानत का अनुरोध करते हुए कार्यकर्ता शरजील इमाम ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बिना किसी पूर्ण सुनवाई या किसी भी दोषसिद्धि के बिना, "खतरनाक बौद्धिक आतंकवादी" करार दिए जाने पर नाराजगी व्यक्त की थी।

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इमाम की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि वह आतंकवादी नहीं हैं, जैसा कि प्रतिवादी (पुलिस) ने उन्हें कहा है। वह राष्ट्र-विरोधी नहीं हैं, जैसा कि सरकार ने कहा है। वह इस देश के नागरिक हैं, जन्म से नागरिक हैं और उन्हें अब तक किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है। इमाम को 28 जनवरी, 2020 को गिरफ्तार किया गया था, जो कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा से पहले की बात है।

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उमर खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि फरवरी 2020 में जब दंगे भड़के थे तब उनका मुवक्किल दिल्ली में नहीं था और उसे इस तरह कैद में नहीं रखा जा सकता। गुलफिशा फातिमा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने अदालत को बताया कि कार्यकर्ता ने छह साल जेल में बिताए हैं और उन्होंने मुकदमे में देरी को "आश्चर्यजनक और अभूतपूर्व" बताया। खालिद, इमाम और अन्य की जमानत याचिकाओं का कड़ा विरोध करते हुए, दिल्ली पुलिस ने कहा कि फरवरी 2020 के दंगे कोई स्वतःस्फूर्त घटना नहीं थे, बल्कि भारत की संप्रभुता पर एक "सुनियोजित, पूर्व नियोजित और सुनियोजित" हमला थे।

खालिद, इमाम, फातिमा, मीरान हैदर और शिफा उर रहमान पर आतंकवाद रोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानों के तहत दंगों के कथित "मास्टरमाइंड" होने का मामला दर्ज किया गया है। दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी।

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