Delhi 2020 Riots Case : दिल्ली दंगे मामले में कोर्ट का बड़ा बयान, कहा- एसआईटी और आयोग की मांग बाहर से उठ रही
Delhi 2020 Riots Case : दिल्ली हाई कोर्ट ने वीरवार को टिप्पणी की कि 2020 के उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के न तो आरोपी और न ही पीड़ित दिल्ली पुलिस की ओर से दायर आरोपपत्रों को चुनौती देने या मामले की दोबारा जांच की मांग करते हुए आगे आए हैं, बल्कि बाहरी लोग राहत की मांग कर रहे हैं। हाई कोर्ट की यह टिप्पणी विभिन्न याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई के दौरान की। इन याचिकाओं में विशेष जांच दल (एसआईटी), जांच आयोग या तथ्य-खोज समिति के गठन, मुआवजे और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किए गए हैं, वे अदालत में यह कहने नहीं आए हैं कि जांच गलत है और इसकी दोबारा जांच की जानी चाहिए। न ही पीड़ित आए हैं। ये बाहरी लोग हैं जो आकर ऐसा अनुरोध कर रहे हैं। अदालत ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 15 दिसंबर की तारीख तय की। पीठ ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि पिछले पांच वर्ष से अधिक समय में उन्होंने किसी अन्य एजेंसी द्वारा जांच या दोबारा जांच की मांग को लेकर मजिस्ट्रेट अदालत में याचिका क्यों नहीं दायर की।
याचिकाकर्ताओं में से एक, जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से दलीलें सुनते हुए, अदालत ने अधिवक्ता से पूछा कि क्या उन्होंने कभी पुलिस से संपर्क किया और कहा कि उनके पास कुछ सामग्री या सबूत हैं जो दर्शाते हैं कि पुलिस के शीर्ष अधिकारी अविश्वसनीय या पक्षपाती हैं। पीठ ने वकील से कहा कि हमें दिखाइए कि पुलिस पक्षपाती है। कोई भी पीड़ित सामने आकर ऐसा नहीं बोला है। जांच में आपका क्या योगदान है। हमें बताइए कि किस कानून के तहत, हम इन समाचार रिपोर्ट को सबूत के तौर पर ले सकते हैं। इस पर वकील ने जवाब दिया कि उनके पास जो भी सबूत उपलब्ध थे, वे उन्होंने अपनी याचिका के साथ दाखिल कर दिए हैं, जिनमें समाचार रिपोर्ट और अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट शामिल हैं।
अदालत ने याचिकाकर्ताओं से यह भी पूछा कि वे सर्वोच्च न्यायालय का रुख क्यों नहीं करते, जहां इसी तरह के एक मामले की सुनवाई हो रही है। हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि इसी तरह की सामग्री के आधार पर राहत की मांग वाली एक याचिका पहले से ही शीर्ष अदालत में लंबित है, इसलिए दो अलग-अलग अदालतों में सुनवाई करने की कोई आवश्यकता नहीं है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दंगों की स्वतंत्र जांच के लिए विशेष जांच समिति (एसआईटी) के गठन की मांग की है। नागरिकता कानून के विरोध के दौरान 24 फरवरी, 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक झड़प हुई, जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए और लगभग 700 घायल हुए। इस दंगे के संबंध में उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं लंबित हैं।
याचिकाओं में मांग की गई है कि राजनीतिक नेताओं पर कथित घृणास्पद भाषणों के लिए मामला दर्ज किया जाए, हिंसा की जांच के लिए विशेष जांच दल का गठन किया जाए और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाए। याचिकाकर्ता अजय गौतम ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के विरोध के पीछे ‘राष्ट्र-विरोधी ताकतों' का पता लगाने के लिए आतंकवाद-विरोधी कानून के तहत राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) जांच का अनुरोध किया है। शेख मुजतबा फारूक द्वारा दायर जनहित याचिका में भाजपा नेताओं अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अभय वर्मा के खिलाफ इलाके में हिंसा भड़कने से पहले कथित तौर पर घृणास्पद भाषण देने के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
लॉयर्स वॉयस ने कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा के साथ-साथ दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान, एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी, पूर्व एआईएमआईएम विधायक वारिस पठान, महमूद प्राचा, हर्ष मंदर, मुफ्ती मोहम्मद इस्माइल, स्वरा भास्कर, उमर खालिद, मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बीजी कोलसे पाटिल और अन्य के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की मांग की है।
पुलिस ने पहले कहा था कि उसने अपराध शाखा के तहत तीन विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किए हैं और अभी तक ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि उनके अधिकारी हिंसा में शामिल थे या राजनीतिक नेताओं ने इसे भड़काया या इसमें शामिल थे। उसने कहा था कि उनकी जांच से प्रथम दृष्टया यह पता चला है कि यह कोई छिटपुट या स्वतःस्फूर्त हिंसा का मामला नहीं बल्कि समाज में सद्भाव को भंग करने की सुनियोजित साजिश थी। पुलिस ने दावा किया कि अधिकारियों ने बिना किसी डर या पक्षपात के, पेशेवर तरीके से, प्रभावित क्षेत्रों में कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने और दंगों के दौरान जान-माल की रक्षा करने के लिए तत्परता, सतर्कता और प्रभावी ढंग से कार्रवाई की।
