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न्यायपालिका में वरिष्ठता मानदंड तय करने पर फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उच्च न्यायिक सेवा संवर्ग में वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए एक समान और राष्ट्रव्यापी मानदंड तैयार करने पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। देश भर में न्यायाधीशों की धीमी और असमान करियर प्रगति का मुद्दा...

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उच्च न्यायिक सेवा संवर्ग में वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए एक समान और राष्ट्रव्यापी मानदंड तैयार करने पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। देश भर में न्यायाधीशों की धीमी और असमान करियर प्रगति का मुद्दा शीर्ष अदालत में विचाराधीन है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने अधिवक्ता और न्यायमित्र सिद्धार्थ भटनागर, राकेश द्विवेदी, पीएस पटवालिया, जयंत भूषण और गोपाल शंकरनारायणन सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस जॉयमाल्या बागची शामिल हैं। पीठ ने इस स्थिति पर गौर किया कि अधिकांश राज्यों में, दीवानी न्यायाधीश (सीजे) के रूप में भर्ती होने वाले न्यायिक अधिकारी अकसर प्रधान जिला न्यायाधीश (पीडीजे) के स्तर तक भी नहीं पहुंच पाते, हाईकोर्ट के जज के पद तक पहुंचना तो दूर की बात है। इसके परिणामस्वरूप कई प्रतिभाशाली युवा अधिवक्ता सीजे के स्तर की सेवा में शामिल होने से हतोत्साहित हो रहे हैं। पीठ समूचे देश में सबसे निचले पद पर नियुक्त होने वाले न्यायिक अधिकारियों की धीमी और असमान करियर प्रगति को लेकर चिंतित है और उसने 28 अक्टूबर को उच्च न्यायिक सेवा (एचजेएस) संवर्ग में वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए एक समान, राष्ट्रव्यापी मानदंड तैयार करने पर सुनवाई शुरू की।

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