COP30 Summit: भारत ब्राजील के नेतृत्व वाले वन कोष में पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हुआ
COP30 Summit: भारत उष्णकटिबंधीय वनों के लिए ब्राजील के नए वैश्विक कोष में पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हो गया है और उसने विकसित देशों से कार्बन उत्सर्जन की कटौती में तेजी लाने एवं जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए...
COP30 Summit: भारत उष्णकटिबंधीय वनों के लिए ब्राजील के नए वैश्विक कोष में पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हो गया है और उसने विकसित देशों से कार्बन उत्सर्जन की कटौती में तेजी लाने एवं जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का आह्वान किया है।
ब्राजील के बेलेम में आयोजित कॉप30 (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज) के नेताओं के शिखर सम्मेलन में ब्राजील में भारतीय राजदूत दिनेश भाटिया ने शुक्रवार को भारत का वक्तव्य पेश करते हुए बहुपक्षवाद और पेरिस समझौते के प्रति देश की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
पेरिस समझौते की इस वर्ष 10वीं वर्षगांठ है। भाटिया ने कहा, ‘‘भारत उष्णकटिबंधीय वनों के संरक्षण के लिए सामूहिक और सतत वैश्विक कार्रवाई की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करने वाली ‘ट्रॉपिकल फोरेस्ट्स फोरएवर फैसिलिटी' (टीएफएफएफ) की स्थापना में ब्राजील की पहल का स्वागत और समर्थन करता है। भारत को इस सुविधा में एक पर्यवेक्षक के रूप में शामिल होने पर प्रसन्नता हो रही है।''
टीएफएफएफ की बृहस्पतिवार को शुरुआत की गई। यह ब्राजील के नेतृत्व वाला एक वैश्विक कोष है जो उष्णकटिबंधीय देशों को वनों के संरक्षण और विस्तार के लिए पुरस्कृत करता है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक और निजी निवेश के माध्यम से लगभग 125 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाना है और इससे प्राप्त राशि का उपयोग वनों का संरक्षण करने वाले देशों को भुगतान करने के लिए करना है।
भारत ने कहा कि कॉप30 ‘ग्लोबल वार्मिंग' की चुनौती के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया पर विचार करने और उस रियो शिखर सम्मेलन की विरासत का जश्न मनाने का एक अवसर है जिसमें न्यायसंगत एवं साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के सिद्धांतों को अपनाया गया था।
भारत ने कहा कि पेरिस समझौते के 10 साल बाद भी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक महत्वाकांक्षा ‘‘अपर्याप्त'' है और ‘‘कई देशों के एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) अपर्याप्त हैं।''
राजदूत ने कहा, ‘‘विकासशील देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए निर्णायक कदम उठा रहे हैं लेकिन वैश्विक कार्बन बजट का अनुपातहीन रूप से दुरुपयोग करने वाले विकसित देशों को उत्सर्जन में कमी करने में तेजी लानी चाहिए और वह पर्याप्त मदद मुहैया करानी चाहिए जिसका उन्होंने वादा किया है।''
भारत ने विकसित देशों से आग्रह किया कि वे घोषित समय से बहुत पहले ही ‘निवल शून्य' उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुंच जाएं और ‘निवल नकारात्मक' उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए पर्याप्त निवेश करें। भाटिया ने कहा कि महत्वाकांक्षी एनडीसी को लागू करने के लिए विकासशील देशों की किफायती वित्त, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण तक पहुंच महत्वपूर्ण है।
एनडीसी पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं हैं जो उत्सर्जन में कटौती करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लक्ष्य निर्धारित करती हैं तथा तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के वैश्विक प्रयासों का मार्गदर्शन करती हैं।
देशों को इस वर्ष 2031-2035 की अवधि के लिए अपने तीसरे दौर के एनडीसी यानी ‘एनडीसी 3.0' प्रस्तुत करने होंगे। अधिकारियों ने कहा है कि भारत अपने अद्यतन एनडीसी 10 से 21 नवंबर तक होने वाले कॉप30 से पहले या उसमें प्रस्तुत कर सकता है।
भाटिया ने भारत की घरेलू प्रगति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देश ने लगातार ऐसे कदम उठाने पर काम किया है कि विकास कार्यों के दौरान कम कार्बन उत्सर्जन हो और उसने अपने कई जलवायु लक्ष्यों को समय से पहले हासिल किया है।
उन्होंने कहा कि 2005 से 2020 के बीच भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 36 प्रतिशत की कमी की है और यह प्रवृत्ति जारी है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत द्वारा उठाए जा रहे कदमों की जानकारी दी।
भाटिया ने कहा कि जलवायु कार्रवाई के आगामी दशक में केवल लक्ष्य निर्धारित करने पर ही ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए बल्कि ठोस कार्यान्वयन, लचीलापन अपनाने और आपसी विश्वास एवं निष्पक्षता पर आधारित साझा जिम्मेदारी सुनिश्चित करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

