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संविधान स्याही से उकेरी गई मौन क्रांति : सीजेआई

जस्िटस गवई बोले- कभी अछूत रहे समाज का व्यक्ति आज प्रधान न्यायाधीश
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जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई
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नयी दिल्ली, 11 जून (एजेंसी)

भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने संविधान को ‘स्याही से उकेरी गई एक मौन क्रांति’ और एक परिवर्तनकारी शक्ति बताया जो न केवल अधिकारों की गारंटी देती है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित लोगों का सक्रिय रूप से उत्थान करती है। भारत के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होने वाले दूसरे दलित और पहले बौद्ध न्यायमूर्ति गवई ने लंदन (ब्रिटेन) स्थित ऑक्सफोर्ड यूनियन में ‘प्रतिनिधित्व से लेकर कार्यान्वयन तक: संविधान के वादे को मूर्त रूप देना’ विषय पर अपने संबोधन में देश के सर्वोच्च पद तक अपनी यात्रा का उल्लेख किया।

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प्रधान न्यायाधीश ने कहा, कई दशक पहले, भारत के लाखों नागरिकों को ‘अछूत’ कहा जाता था। उन्हें बताया जाता था कि वे अशुद्ध हैं और अपने लिए नहीं बोल सकते लेकिन आज हम यहां हैं। जहां उन्हीं लोगों से संबंधित एक व्यक्ति देश की न्यायपालिका में सर्वोच्च पद धारक के रूप में खुलकर बोल रहा है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, आज ऑक्सफोर्ड यूनियन में, मैं आपके सामने यह कहने के लिए खड़ा हूं : भारत के सबसे कमजोर नागरिकों के लिए, संविधान केवल एक कानूनी चार्टर या राजनीतिक ढांचा नहीं है। यह एक भावना है, एक जीवन रेखा है, स्याही से उकेरी गई एक मौन क्रांति है। उन्होंने कहा, नगरपालिका के स्कूल से लेकर भारत के प्रधान न्यायाधीश के पद तक मेरी अपनी यात्रा में, यह एक मार्गदर्शक शक्ति रही है। प्रधान न्यायाधीश ने डॉ. बी.आर. आंबेडकर की विरासत का जिक्र करते हुए कहा कि वह एक दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिन्होंने जातिगत भेदभाव के अपने अनुभव को न्याय की वैश्विक समझ में बदल दिया।

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