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कांग्रेस ने कहा- देश में 11 साल से अघोषित Emergency, लोकतंत्र खतरनाक हमले की चपेट में

नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा) Congress vs BJP: कांग्रेस ने आपातकाल के 50 साल पूरा होने के मौके पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हमले को लेकर बुधवार को पलटवार किया और आरोप लगाया कि पिछले 11 वर्षों से देश...
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नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा)

Congress vs BJP: कांग्रेस ने आपातकाल के 50 साल पूरा होने के मौके पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हमले को लेकर बुधवार को पलटवार किया और आरोप लगाया कि पिछले 11 वर्षों से देश में अघोषित आपातकाल है तथा लोकतंत्र पर अलग-अलग दिशाओं से संगठित एवं खतरनाक हमले किए जा रहे हैं।

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कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया कि मोदी सरकार में संविधान पर हमले हो रहे है, राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ जांच एजेंसियो का दुरुपयोग किया जा रहा है, संसदीय परंपराओं को तार-तार किया जा रहा है, न्यायपालिका को कमजोर किया जा रहा है और अब निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लग चुके हैं।

रमेश ने एक बयान में कहा, "11 साल से अघोषित आपातकाल है। पिछले 11 वर्ष और तीस दिन से भारतीय लोकतंत्र पांच दिशाओं से हो रहे एक संगठित और खतरनाक हमले की चपेट में है।" उन्होंने दावा किया, "संविधान पर हमले हो रहे हैं। संविधान बदलने के लिए जनादेश की मांग की गई। प्रधानमंत्री ने 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की विरासत को धोखा देने के इरादे से "चार सौ पार'' का जनादेश भारत की जनता से मांगा था ताकि संविधान बदल सकें। लेकिन भारत की जनता ने उन्हें यह जनादेश देने से मना कर दिया।"

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि जनता ने मौजूदा संविधान में निहित आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय को संरक्षित सुरक्षित करने एवं आगे बढ़ाने के लिए वोट दिया। रमेश ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने लगातार संसदीय परंपराओं और मर्यादाओं को तार-तार किया है और जनता से जुड़े मुद्दे उठाने भर पर सांसदों को मनमाने तरीके से निलंबित कर दिया गया।

उनका कहना है, "सरकार ने राष्ट्रीय महत्व के गंभीर मुद्दों पर चर्चा से इनकार किया है। महत्वपूर्ण विधेयकों को बगैर बहस के जबरन पारित कराया गया। संसदीय समितियों की भूमिका को दरकिनार कर दिया गया है।" कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की भूमिका अप्रासंगिक बना दी गई है और निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग चुके हैं।

रमेश के अनुसार, कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों की पारदर्शिता को लेकर जो गंभीर सवाल उठे, उन्हें जानबूझकर नजरअंदाज किया गया। उन्होंने दावा किया, "चुनाव की तारीखों और चरणों को इस तरह से तय किया गया कि उसका सीधा लाभ सत्तारूढ़ पार्टी को मिले। प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा दिए गए विभाजनकारी और भड़काऊ बयानों पर भी चुनाव आयोग पूरी तरह चुप्पी साधे रहा है।"

रमेश ने यह आरोप भी लगाया कि मोदी सरकार ने केंद्र-राज्य संबंधों को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा, "भाजपा ने विपक्षी नेतृत्व वाली राज्य सरकारों को गिराने के लिए धनबल का इस्तेमाल किया। विपक्ष-शासित राज्यों में विधेयकों को रोकने और विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में अनावश्यक हस्तक्षेप करने के लिए राज्यपाल कार्यालय का दुरुपयोग किया गया। केंद्र सरकार द्वारा संवैधानिक राजकोषीय व्यवस्थाओं को दरकिनार कर उपकर का जरूरत से ज्यादा उपयोग करते हुए राज्यों को उनके वैध राजस्व हिस्से से वंचित कर दिया गया।"

रमेश ने आरोप लगाया कि न्यायपालिका को कमजोर किया गया है, "टैक्स टेररिज्म" तथा एजेंसियो के माध्यम से डर का ऐसा माहौल बनाया गया है कि पहले बेबाक रहने वाले कई उद्योगपति अब चुप हैं। उन्होंने कहा, "जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके एक पसंदीदा कॉरपोरेट समूह को लाभ पहुंचाया गया- हवाई अड्डे, बंदरगाह, सीमेंट संयंत्र और यहां तक कि मीडिया हाउस तक उस समूह को सौंप दिए गए।"

रमेश ने आरोप लगाया कि ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं को परेशान करने और उन्हें बदनाम करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने दावा किया, "सरकार की आलोचना करने वालों को लगातार बदनाम किया गया है। सत्ता में बैठे लोगों द्वारा जानबूझकर नफरत और कट्टरता फैलाई जाती है।"

रमेश ने कहा, "आंदोलन कर रहे किसानों को "खालिस्तानी" कहा गया, जातिगत जनगणना की मांग करने वालों को "अर्बन नक्सल" करार दिया गया। महात्मा गांधी के हत्यारों का महिमामंडन किया गया। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अपने जीवन और संपत्ति को लेकर भय के माहौल में जी रहे हैं। दलितों और अन्य वंचित समूहों को लगातार निशाना बनाया गया है, और नफ़रत फैलाने वाले वाले मंत्रियों को इनाम के तौर पर पदोन्नति मिली है।"

उन्होंने यह दावा भी किया, "आज मीडिया पर अभूतपूर्व दबाव है। सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों और समाचार संस्थानों को धमकी, गिरफ्तारी और छापे का सामना करना पड़ा है। जनता को ताकत देने वाला सूचना का अधिकार कानून भी लगभग निष्प्रभावी कर दिया गया है।"

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