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कांग्रेस ने कहा- मध्य प्रदेश में अदाणी की कोयला परियोजना में FRA और PESA Act का उल्लंघन हुआ

Adani Coal Project: कांग्रेस ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में अदाणी समूह की धीरौली कोयला परियोजना में वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) का उल्लंघन किया...
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Adani Coal Project: कांग्रेस ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में अदाणी समूह की धीरौली कोयला परियोजना में वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) का उल्लंघन किया गया है।

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि परियोजना को दूसरे चरण की वन मंजूरी मिले बिना ही पेड़ों की कटाई शुरू कर दी गई है। कांग्रेस के आरोप पर अदाणी समूह की तरफ से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अदाणी पावर ने धीरौली खदान में खनन कार्य शुरू करने की कोयला मंत्रालय से मंजूरी मिलने की जानकारी बीते दो सितंबर को दी थी।

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कंपनी ने बयान में कहा था कि इस महत्वपूर्ण प्रगति से अदाणी पावर को कच्चे माल की बेहतर सुरक्षा मिलेगी, जिससे इस क्षेत्र में उसकी अग्रणी स्थिति और मजबूत होगी। रमेश ने ‘एक्स' पर पोस्ट किया, "मध्य प्रदेश के धीरौली में, 'मोदानी' ने अपनी कोयला खदान के लिए सरकारी और वन भूमि पर पेड़ों की कटाई शुरू कर दी है।

दूसरे चरण की वन मंज़ूरी के बिना और वन अधिकार अधिनियम, 2006 और पेसा, 1996 का घोर उल्लंघन करते हुए यह किया गया है। ग्रामीण, जिनमें ज़्यादातर अनुसूचित जनजाति समुदाय और यहां तक कि विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) भी शामिल हैं, सही विरोध कर रहे हैं।" उन्होंने कहा कि यह कोयला क्षेत्र पांचवीं अनुसूची वाले क्षेत्र में आता है, जहां जनजातीय अधिकारों और स्वशासन के प्रावधानों को संवैधानिक रूप से संरक्षित किया गया है।

रमेश ने दावा किया कि पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 के प्रावधानों और ग्राम सभा की सहमति को अनिवार्य बनाने वाले उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के बावजूद, ग्राम सभा से कोई परामर्श नहीं हुआ है। उनका कहना है, " वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अनुसार, गैर-वनीय उद्देश्यों के लिए वन भूमि के उपयोग पर ग्राम सभा को ही निर्णय लेना होगा। हालांकि, इस मामले में ग्राम सभा की मंज़ूरी को नज़रअंदाज़ किया गया प्रतीत होता है।"

उन्होंने कहा, "लगभग 3,500 एकड़ प्रमुख वन भूमि के उपयोग के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से दूसरे चरण की मंज़ूरी अभी तक नहीं मिली है, जबकि 'मोदानी' वनों की कटाई शुरू कर रहे हैं।" रमेश ने कहा, " परियोजनाओं के कारण पहले उजड़े परिवारों को अब फिर से बेदखली का सामना करना पड़ रहा है। यह दोहरा विस्थापन है।"

उन्होंने दावा किया कि इस परियोजना के लागू होने से महुआ, दवाइयां, ईंधन की लकड़ी, सब कुछ गायब हो जाएगा, जिसका सीधा असर आदिवासी समुदायों की आजीविका पर पड़ेगा। उन्होंने कहा, "जंगल सिर्फ़ जीविका ही नहीं, बल्कि स्थानीय आदिवासी समूहों के लिए पवित्र भी हैं। क्षतिपूरक वनरोपण एक बहुत ही खराब पारिस्थितिकी विकल्प है।"

रमेश ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने 2019 में ऊपर से यह आवंटन लागू किया था, और अब 2025 में वह बिना किसी ज़रूरी क़ानूनी मंज़ूरी के इसे आगे बढ़ा रही है। उन्होंने दावा किया कि ऐसा सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि "मोदानी" ख़ुद एक क़ानून हैं।

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