नयी दिल्ली, 9 अक्तूबर (एजेंसी) : सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने शनिवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन की ओर से सैन्य जमावड़ा और व्यापक पैमाने पर तैनाती को बनाए रखने के लिए नये बुनियादी ढांचे का विकास चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि भारत चीनी पीएलए की सभी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे हुए है। उन्होंने कहा कि यदि चीनी सेना दूसरी सर्दियों के दौरान भी तैनाती बनाए रखती है, तो इससे एलओसी (नियंत्रण रेखा) जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, हालांकि सक्रिय एलओसी नहीं, जैसा पाकिस्तान के साथ पश्चिमी मोर्चे पर है। थल सेनाध्यक्ष ने कहा कि अगर चीनी सेना अपनी तैनाती जारी रखती है, तो भारतीय सेना भी अपनी तरफ अपनी मौजूदगी बनाए रखेगी जो ‘पीएलए के समान ही है।’ पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से लगे कई क्षेत्रों में भारत और चीन की सेनाओं के बीच लगभग 17 महीनों से गतिरोध बना हुआ है। वैसे दोनों पक्ष श्रृंखलाबद्ध वार्ता के बाद टकराव वाले कई बिंदुओं से पीछे हटे हैं। जनरल नरवणे ने ‘इंडिया टुडे कॉन्क्लेव’ में कहा, ‘हां, यह चिंता का विषय है कि बड़े पैमाने पर जमावड़ा हुआ है और यह जारी है और उस तरह के जमावड़े को बनाए रखने के लिए, चीन की ओर बुनियादी ढांचे का इसी पैमाने का विकास भी हुआ है।’ उन्होंने कहा, ‘तो, इसका मतलब है कि वे (पीएलए) वहां बने रहने के लिए हैं। हम इन सभी घटनाक्रम पर कड़ी नजर रखे हुए हैं, लेकिन अगर वे वहां बने रहने के लिए हैं, तो हम भी वहां बने रहने के लिए हैं।’ जनरल नरवणे ने कहा कि भारत की ओर से भी तैनाती और बुनियादी ढांचे का विकास पीएलए के समान है।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।