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Chhath Festival 2025 : घाटों की सफाई से लेकर रोशनी तक, बिहार कर रहा छठ महापर्व का स्वागत

बिहार में छठ पूजा को लेकर व्यापक तैयारियां
खतरनाक झाग से भरी यमुना नदी के किनारे पर छठ पर्व की शुरुआत करतीं एक श्रद्धालु। - प्रेट्र
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Chhath Festival 2025 : बिहार सरकार ने छठ पूजा के तीसरे दिन (सोमवार) डूबते सूरज को अर्घ्य देने के अनुष्ठान के लिए पूरे राज्य में व्यापक तैयारियां की हैं। भक्त सोमवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठी मैया की पूजा-अर्चना करेंगे। पटना सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में गंगा नदी और अन्य जलाशयों पर लाखों श्रद्धालुओं के उमड़ने की संभावना है। मंगलवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ यह चार दिवसीय महापर्व संपन्न हो जाएगा।

पटना जिला प्रशासन ने गंगा नदी के 102 से अधिक घाटों, 45 उद्यानों और 63 तालाबों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं ताकि छठ के दौरान किसी भी तरह की अनहोनी से बचा जा सके। अधिकारियों के अनुसार, पटना जिले में सुचारू छठ पूजा के लिए 205 दंडाधिकारी, 171 ‘वॉच टावर' पर सुरक्षाकर्मी, 103 मेडिकल शिविर, राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ) एवं राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की 23 टीम, 444 गोताखोर, 323 नावें और नागरिक सुरक्षा के 143 स्वयंसेवक तैनात किए गए हैं।

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एक अधिकारी ने कहा कि सभी घाट छठ पूजा के लिए तैयार हैं। पटना में पर्याप्त व्यवस्थाएं की गई हैं। सभी स्थायी घाटों को ‘रिवरफ्रंट' से जोड़ा गया है जिससे श्रद्धालुओं को पहुंचने में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी। छठ पूजा को लेकर दिशा-निर्देश भी जारी किए गए हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है। अधिकारियों को भी यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि भक्तों को किसी प्रकार की असुविधा न हो। छह खतरनाक और सात अनुपयुक्त घाटों पर जाने से मना किया गया है।

उन्होंने कहा कि राजधानी में भीड़ प्रबंधन और किसी अप्रिय घटना से बचाव के लिए बड़ी संख्या में अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं। यह चार दिवसीय पर्व 25 अक्टूबर को ‘नहाय-खाय' अनुष्ठान के साथ शुरू हुआ था और 28 अक्टूबर को संपन्न होगा। यह कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाता है जो दिवाली के छह दिन बाद पड़ती है। इस दिन श्रद्धालु छठी मैया (सूर्य देव) की आराधना कर परिवारों और बच्चों की समृद्धि की कामना करते हैं।

पहले दिन ‘नहाय-खाय' में श्रद्धालु गंगा या अन्य नदियों और तालाबों में स्नान कर भोजन ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन उपवास रखा जाता है, जो सूर्य और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद शाम को खोला जाता है। तीसरे दिन ‘पहला अर्घ्य' या ‘सांध्य अर्घ्य' के दौरान श्रद्धालु परिवार के साथ नदी तट पर जाकर सूर्य देव को अर्घ्य एवं प्रसाद अर्पित करते हैं। चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पर्व का समापन होता है।

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