नयी दिल्ली, 9 मई (एजेंसी)
केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह राजद्रोह के दंडनीय कानून की संवैधानिक वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए क्योंकि उसने (केंद्र ने) इस प्रावधान पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है, जो कि सक्षम मंच के समक्ष ही हो सकता है। चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत तथा जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने 5 मई को कहा था कि वह इस कानूनी प्रश्न पर दलीलों पर सुनवाई 10 मई को करेगी कि राजद्रोह पर औपनिवेशिक काल के दंडनीय कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को केदारनाथ सिंह मामले में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 1962 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए बड़ी पीठ को भेजा जाए या नहीं।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी द्वारा दाखिल हलफनामे के अनुसार सरकार ने आईपीसी की धारा 124ए के प्रावधानों का पुन: अध्ययन और पुनर्विचार करने का फैसला किया है जो सक्षम मंच पर ही हो सकता है। हलफनामे में कहा गया, ‘इसके मद्देनजर, बहुत सम्मान के साथ यह बात कही जा रही है कि माननीय न्यायालय एक बार फिर भादंसं की धारा 124ए की वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए और एक उचित मंच पर भारत सरकार द्वारा की जाने वाली पुनर्विचार की प्रक्रिया की कृपया प्रतीक्षा की जाए जहां संवैधानिक रूप से इस तरह के पुनर्विचार की अनुमति है।’