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राजीव प्रताप रूड़ी की जीत में हावी रहे जातीय समीकरण

बिहार के सारण से भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूड़ी ने बुधवार को कॉिन्स्टट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के सचिव (प्रशासन) पद पर कड़े मुकाबले में जीत हासिल की। उनका मुकाबला पार्टी के ही पूर्व सांसद संजीव बालियान से था। पांच बार...
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बिहार के सारण से भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूड़ी ने बुधवार को कॉिन्स्टट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के सचिव (प्रशासन) पद पर कड़े मुकाबले में जीत हासिल की। उनका मुकाबला पार्टी के ही पूर्व सांसद संजीव बालियान से था। पांच बार सांसद रहे रूड़ी के निर्वाचित घोषित होते ही समर्थकों ने 15वीं सदी के राजपूत राजा राणा सांगा की याद में जश्न के नारे लगाए।

यह चुनाव केवल दो नेताओं की प्रतिस्पर्धा नहीं थी, बल्कि इसमें जातीय और क्षेत्रीय समीकरण खुलकर सामने आए। रूड़ी जहां बिहार से आने वाले राजपूत समुदाय के नेता हैं, वहीं बालियान मुज़फ्फरनगर में जन्मे जाट नेता माने जाते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान जातिगत समर्थन स्पष्ट दिखा और रूड़ी के समर्थन में राजपूत नेताओं की एकजुटता ने निर्णायक भूमिका निभाई। शुरुआत में ऐसा लग रहा था कि रूड़ी की स्थिति अच्छी नहीं है। वह 25 साल से सीसीआई सचिव प्रशासन के पद पर हैं। बालियान के समर्थकों का कहना है कि इसी वजह से मुजफ्फरनगर के पूर्व सांसद ने चुनाव लड़ने का फैसला किया। भाजपा के दो नेताओं के एक दुर्लभ मुकाबले में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होने से सीसीआई चुनाव रोचक हो गया। इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे दिग्गज मतदान करने के लिए पहुंचे।

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हालांकि, बालियान को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी सांसद निशिकांत दुबे का समर्थन प्राप्त था और यह भी चर्चा रही कि खुद शाह भी बालियान के पक्ष में हैं। बावजूद इसके, रूड़ी ने 100 मतों से जीत दर्ज की। इस चुनाव में विपक्षी दलों के साथ-साथ भाजपा के भीतर भी एक वर्ग ने रूड़ी का समर्थन किया। सीसीआई चुनाव में पहले दिन से ही जातिगत और क्षेत्रीय चुनावी समीकरण स्पष्ट रूप से उभरे और अधिकांश मतदाताओं ने नतीजों में सामुदायिक समीकरणों की भूमिका को स्वीकार किया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य प्रमुख राजपूत नेताओं के मौन समर्थन की चर्चा रही। पूर्व मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर सहित कई राजपूत नेता मतदान के लिए पहुंचे। आजादी के 78 साल बाद भी, जाति भारतीय समाज का अभिन्न अंग बनी हुई है, जो चुनावी मुकाबलों में समीकरण तय करती है, हावी होती है और अक्सर बदल देती है। सीसीआई की स्थापना 1947 में हुई थी और यह सांसदों के लिए एक सभास्थल के रूप में है।

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