...लेकिन यह एक हारी हुई लड़ाई थी
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की पहली और एकमात्र महिला निदेशक डॉ. स्नेह भार्गव ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पहली बार, 31 अक्तूबर, 1984 को घटित घटनाओं का विस्तृत विवरण अपने हाल ही में प्रकाशित संस्मरणों में दर्ज किया है। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘द वूमन हू रैन एम्स’ एक जगरनॉट प्रकाशन से इंदिरा गांधी को गोली लगने और एम्स कैजुअल्टी में लाए जाने से लेकर उनके पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि देने के लिए तीन मूर्ति भवन ले जाए जाने तक की अब तक छिपी जानकारी को उजागर किया है। 31 अक्तूबर, 1984 को स्नेह भार्गव का एम्स निदेशक के रूप में पहला दिन था जिस पर इंदिरा गांधी ने ही तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्हें नियुक्त किया था। जब इंदिरा गांधी ने उन्हें संस्थान का निदेशक नियुक्त किया, तब वे एम्स में रेडियोलॉजी की विभागाध्यक्ष थीं। उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन की यादें अब भी 94 वर्षीय भार्गव को सताती हैं।
उन्होंने पुस्तक में बताया है कि क्यों 4 घंटे तक हमारा काम यह दिखावा करना था कि हम इंदिरा गांधी की जान बचाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि वास्तव में जब उन्हें एम्स लाया गया तो उनकी मृत्यु हो चुकी थी। हमें बताया गया कि हमें उनकी मृत्यु की घोषणा तब तक टालनी होगी जब तक कि उनके बेटे राजीव गांधी, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और अन्य लोग दिल्ली नहीं पहुंच जाते। राजीव गांधी को वापस आते ही शपथ लेनी थी।
फिरोजपुर में जन्मी भार्गव याद करती हैं, मैंने कार्यभार भी नहीं संभाला था। मेरी नियुक्ति की पुष्टि के लिए बैठक चल रही थी, तभी एक रेडियोग्राफर ने दरवाजा खोला और कहा कि प्रधानमंत्री अस्पताल में हैं। हर जगह अफरा-तफरी मच गई। स्नेह भार्गव ने ट्रिब्यून को बताया कार्यभार के पहले ही दिन भयावह स्थिति का सामना करना पड़ा। मैंने उनकी बेजान देह को एक तख्त पर पड़ा देखा जिस पर चादर भी नहीं थी। उन पर चलाई गई 33 गोलियों में से कुछ उनके शरीर से होकर गुज़र गईं। गोलियों ने उनके फेफड़े और जिगर को चकनाचूर कर दिया था। हमें बी नेगेटिव, उनके रक्त समूह की व्यवस्था करने में संघर्ष करना पड़ा। उनके शरीर में रक्त पंप किया जा रहा था, लेकिन यह एक हारने वाली लड़ाई थी। डॉ. वेणुगोपाल को अपने स्क्रब तीन बार बदलने पड़े।
उनके निजी सचिव आर.के. धवन और सलाहकार एम.एल. फोतेदार रो रहे थे। उन्होंने बताया कि कैसे इंदिरा गांधी को आठवीं मंजिल पर ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया और उनकी बहू सोनिया गांधी के लिए शोकसभा में शामिल लोगों से मिलने के लिए सातवीं मंजिल पर व्यवस्था की गई।
भार्गव ने यह भी याद किया कि कैसे पीएम पर हार्ट लंग मशीन का संचालन करने वाला एक सिख तकनीशियन, जब उसने सुना कि सिख अंगरक्षकों ने उसे गोली मार दी है, तो वह ओटी से भाग गया। भार्गव कहती हैं कि एक और चुनौती प्रधानमंत्री के शव को लेप से ढंकना था। प्रयास विफल रहा। इसलिए हमने उनके चेहरे पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया और उन्हें एक विशेष कूलिंग गद्दे पर लिटाया, जिसका उपयोग हृदय शल्य चिकित्सा में मरीज के तापमान को कम रखने के लिए किया जाता है।
स्नेह भार्गव ने बताया कि कैसे उन्होंने सुनिश्चित किया कि दंगों के दौरान एम्स के सिख संकाय, तकनीशियन और उनके परिवार सुरक्षित रहें। मैंने दिल्ली पुलिस प्रमुख से बात की और हमने अपने सिख परिवारों को सुरक्षित रखने के लिए एम्स में पुलिसकर्मी तैनात किए। उन्होंने आगे कहा- मैंने तब खुद से पूछा और आज भी खुद से पूछती हूं हम धर्म के आधार पर क्यों लड़ रहे हैं? क्या हम एक साथ नहीं रह सकते?