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Breast Cancer स्तन कैंसर की जांच में भारत सबसे पीछे: अफ्रीकी देशों से भी बदतर हालात

महिलाओं के लिए खतरे की घंटी, नीति, जागरूकता और इलाज की पहुँच बढ़ाने की उठी मांग
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नयी दिल्ली, 15 अप्रैल (एजेंसी) 
Breast Cancer  भारत में हर साल लाखों महिलाएं स्तन कैंसर की चपेट में आती हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में सिर्फ 1.3% ही समय रहते जांच करवा रही हैं। यह आंकड़ा न केवल शर्मनाक है, बल्कि अफ्रीकी देशों से भी खराब स्थिति को दर्शाता है, जहां यह दर 4.5% तक है।
विशेषज्ञों ने इस ‘मौत के सन्नाटे’ को तोड़ने के लिए नीति介, जमीनी जागरूकता और मुफ्त स्क्रीनिंग कार्यक्रमों की मांग की है।

आंकड़ों की कहानी: केरल सबसे आगे, दिल्ली सबसे पीछे

हाल ही में BMC पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार –

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क्यों डरती हैं महिलाएं जांच से?

डॉक्टरों का कहना है कि इसका कारण सिर्फ सुविधाओं की कमी नहीं है, बल्कि गहरे सामाजिक डर, भ्रांतियां और चुप्पी भी हैं।
डॉ. आशीष गुप्ता, प्रमुख ऑन्कोलॉजिस्ट, अमेरिक्स कैंसर हॉस्पिटल कहते हैं –

“अभी भी कई महिलाएं मानती हैं कि मैमोग्राफी दर्दनाक या हानिकारक है। डर, संकोच और जानकारी की कमी उन्हें अस्पताल से दूर रखती है, जिससे कैंसर देर से पकड़ में आता है और इलाज मुश्किल हो जाता है।”

 क्या होना चाहिए अगला कदम?

डॉ. शुभम गर्ग, निदेशक, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, धर्मशिला नारायणा अस्पताल का कहना है  कि मोबाइल मैमोग्राफी यूनिट्स को दूरदराज के गांवों में भेजा जाए। सरकारी स्तर पर मुफ्त जांच अभियान चलाए जाएं। स्कूल और कॉलेज स्तर पर स्वास्थ्य शिक्षा दी जाए, ताकि लड़कियां शुरुआत से सजग रहें।

डॉ. राहुल भार्गव, वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट, फोर्टिस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने चेतावनी दी कि अगर हम किशोरियों को स्तन की स्वपरीक्षा सिखाएं और 45 के बाद नियमित जांच को जरूरी बनाएं, तो 90% तक मौतों को रोका जा सकता है। अब भी अगर हम चुप रहे, तो हर साल हजारों जिंदगियां समय से पहले खत्म होती रहेंगी। अब समय है ‘जागरूकता से कार्रवाई’ की ओर बढ़ने का। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि कंपनियों के हेल्थ पैकेज में मैमोग्राफी को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए।

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