नयी दिल्ली, 12 नवंबर (ट्रिन्यू)
बिहार में नये मुख्यमंत्री की ताजपोशी अब दिवाली के बाद होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद साफ है कि नीतीश कुमार ही प्रदेश की कमान फिर से संभालेंगे। वास्तव में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाना भाजपा की मजबूरी ही है।
विधानसभा चुनाव में एनडीए में भाजपा भले ही बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई हो, लेकिन कमोबेश यही स्थिति महाराष्ट्र में भी थी। भाजपा ने महाराष्ट्र में अपने सबसे पुराने व विश्वसनीय सहयोगी दल शिवसेना को गठबंधन से बाहर जाने दिया लेकिन मुख्यमंत्री पद नहीं सौंपा जबकि बिहार में भाजपा नीतीश को थाली में सजा कर मुख्यमंत्री का पद परोस रही है। यह सच है कि एनडीए बिहार में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर मैदान में उतरा। लेकिन चुनाव के नतीजों से साफ है कि लोगों ने नीतीश के नेतृत्व और उनकी जेडीयू को नकारा है। इसके बावजूद बिहार में नीतीश कुमार को फिर से सत्ता की कमान सौंपने के पीछे कई कारण है। एक तो भाजपा के पास बिहार में ऐसा सर्वमान्य नेता भी नहीं है जो कि नीतीश कुमार की कमी को पूरा कर सके। इसके अलावा नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनाने पर जेडीयू के भी एनडीए से बाहर जाने की आशंका बनी रहती। इसके अलावा भाजपा को अब अगले साल पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु व पुडुचेरी के विधानसभा चुनाव में उतरना है। खासतौर पर भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल, असम सबसे महत्वपूर्ण हैं। भाजपा इन चुनावों से पहले यह संदेश नहीं देना चाहती है कि वह चुनाव पूर्व किए वादे से पीछे हट गई। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा 2024 के लोकसभा चुनावों को भी देख रही है। वह किसी भी हालत में नीतीश कुमार को विपक्षी पाले में नहीं जाने देना चाहती।