Bihar Voter List Dispute : बिहार में एसआईआर के खिलाफ मोर्चा, 28 जुलाई को होगी बड़ी सुनवाई
Bihar Voter List Dispute : बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सुनवाई करेगा। बिहार में इस वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होना है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ इस मामले पर विचार कर सकती है। निर्वाचन आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के जारी एसआईआर को यह कहते हुए उचित ठहराया है कि इससे मतदाता सूची से ‘‘अपात्र व्यक्तियों का नाम हटाने से'' चुनाव की शुचिता बढ़ेगी।
निर्वाचन आयोग ने एसआईआर के आदेश वाले अपने 24 जून के फैसले को उचित ठहराते हुए कहा है कि सभी प्रमुख राजनीतिक दल इस प्रक्रिया में ‘‘शामिल'' हैं और पात्र मतदाताओं तक पहुंचने के लिए 1.5 लाख से अधिक बूथ-स्तरीय एजेंट तैनात किए गए हैं, लेकिन अब वही दल इस प्रक्रिया का सुप्रीम कोर्टमें विरोध कर रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं के आरोपों का खंडन करने के लिए दायर एक विस्तृत हलफनामे में निर्वाचन आयोग ने कहा है कि मतदाता सूची से अपात्र व्यक्तियों के नाम को हटाकर एसआईआर चुनाव की शुचिता को बढ़ाता है। याचिकाकर्ताओं में कई राजनीतिक नेता, नागरिक समाज के सदस्य और संगठन शामिल हैं।
इस बीच, मामले में मुख्य याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' (एडीआर) ने एक प्रत्युत्तर हलफनामे में दावा किया है कि निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) को बेहद व्यापक और अनियंत्रित विवेकाधिकार प्राप्त हैं, जिससे बिहार की बड़ी आबादी के मताधिकार से वंचित होने का खतरा पैदा हो सकता है।
एडीआर ने कहा, ‘‘याचिका में कहा गया है कि यदि 24 जून 2025 का एसआईआर आदेश रद्द नहीं किया गया तो यह मनमाने ढंग से और उचित प्रक्रिया के बिना लाखों नागरिकों को अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार से वंचित कर सकता है। इससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव बाधित होगा तथा लोकतंत्र को नुकसान पहुंचेगा, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं।'' इसने कहा कि बिहार की मतदाता सूची के एसआईआर में आधार और राशन कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची से बाहर करना स्पष्ट रूप से अनुचित है और निर्वाचन आयोग ने इस निर्णय के लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया है।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राज्यसभा सदस्य एवं एसआईआर के खिलाफ एक याचिकाकर्ता मनोज झा ने अधिवक्ता फौजिया शकील के माध्यम से दाखिल अपने प्रत्युत्तर हलफनामे में कहा कि रिपोर्ट में ऐसे मामले सामने आए हैं जहां मतदाताओं ने शिकायत की है कि बूथ स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) न तो उनके घर और ना ही उनके पड़ोस में आए और फॉर्म पर मतदाताओं के जाली हस्ताक्षर करके अपलोड करते हुए पाये गए। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने गत 10 जुलाई को कहा था कि बिहार में एसआईआर के दौरान आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड पर दस्तावेज के तौर पर विचार किया जा सकता है।